-ध्रौव्यपणाना स्वभावरूप छे; अने तेने गुण-पर्याय परिणामस्वरूप सत्त्व
सिद्धांतमां कह्युं छे.
भावार्थः — जीवादि वस्तु छे ते ऊपजवुं, विणसवुं अने स्थिर
रहेवुं ए त्रणे भावमय छे, अने जे वस्तु गुण-पर्याय परिणामस्वरूप
छे ते ज सत् छे. जेम जीवद्रव्यनो चेतना गुण छे, तेनुं स्वभाव-
विभावरूप परिणमन छे तथा समये समये परिणमे छे ते पर्याय छे.
ए ज प्रमाणे पुद्गलद्रव्यना स्पर्श, रस, गंध, वर्ण गुण छे; ते समये
समये स्वभाव के विभावरूपे परिणमे छे ते पर्याय छे. ए प्रमाणे बधां
द्रव्यो गुण-पर्याय परिणामस्वरूप प्रगट छे.
हवे द्रव्योना उत्पाद-व्यय ते शुं छे? ते कहे छेः —
पडिसमयं परिणामो पुव्वो णस्सेदि जायदे अण्णो ।
वत्थुविणासो पढमो उववादो भण्णदे बिंदिओ ।।२३८।।
प्रतिसमयं परिणामः पूर्वः नश्यति जायते अन्यः ।
वस्तुविनाशः प्रथमः उपपादः भण्यते द्वितीयः ।।२३८।।
अर्थः — वस्तुनो परिणाम समये समये प्रथमनो तो विणसे छे
अने अन्य ऊपजे छे; त्यां पहेला परिणामरूप वस्तुनो तो नाश-व्यय
छे तथा अन्य बीजो परिणाम उपज्यो तेने उत्पाद कहीए छीए. ए
प्रमाणे उत्पाद-व्यय थाय छे.
हवे द्रव्यना ध्रुवपणानो निश्चय कहे छेः —
णो उप्पज्जदि जीवो दव्वसरूवेण णेव णस्सेदि ।
तं चेव दव्वमित्तं णिच्चत्तं जाण जीवस्स ।।२३९।।
नो उत्पद्यते जीवः द्रव्यस्वरूपेण नैव नश्यति ।
तत् च एव द्रव्यमात्रं नित्यत्वं जानीहि जीवस्य ।।२३९।।
अर्थः — जीवद्रव्य, द्रव्यस्वरूपथी तो नथी नाशने प्राप्त थतुं के
नथी ऊपजतुं; तेथी द्रव्यमात्रथी जीवने नित्यपणुं समजवुं.
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा