Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 242-243.

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भावार्थःजेम जीवद्रव्यनो चेतनगुण तेनी सर्व पर्यायोमां
मोजुद छेअनादिनिधन छे, ते सामान्यस्वरूपथी ऊपजतोविणसतो
नथी पण विशेषरूपथी पर्यायमां व्यक्तरूप (प्रगटरूप) थाय ज छे, एवो
गुण छे. तेवी रीते बधांय द्रव्योमां पोत-पोताना साधारण (सामान्य)
तथा असाधारण (विशेष) गुणो समजवा.
हवे कहे छे के द्रव्य, गुण अने पर्यायनुं एकपणुं छे ते ज
परमार्थे वस्तु छेः
सो वि विणस्सदि जायदि विसेसरूवेण सव्वदव्वेसु
दव्वगुणपज्जयाणं एयत्तं वत्थु परमत्थं ।।२४२।।
सः अपि विनश्यति जायते विशेषरूपेण सर्वद्रव्येषु
द्रव्यगुणपर्यायाणं एक त्वं वस्तु वत्थु परमार्थं ।।२४२।।
अर्थःसर्व द्रव्योमां जे गुण छे ते पण विशेषरूपथी ऊपजे
विणशे छे. ए प्रमाणे द्रव्य-गुण-पर्यायोनुं एकपणुं छे अने ते ज
परमार्थभूत वस्तु छे.
भावार्थःगुणनुं स्वरूप एवुं नथी के जे वस्तुथी सर्वथा भिन्न
ज होय. गुण-गुणीने कथंचित् अभेदपणुं छे तेथी जे पर्याय ऊपजे
विणसे छे ते गुणगुणीनो विकार छे (विशेष आकार छे). एटला माटे
गुणने पण ऊपजताविणसता कहीए छीए. एवुं ज नित्यानित्यात्मक
वस्तुनुं स्वरूप छे. ए प्रमाणे द्रव्य-गुण-पर्यायोनी एकता ए ज
परमार्थभूत वस्तु छे.
हवे आशंका थाय छे केद्रव्योमां पर्याय विद्यमान ऊपजे छे
के अविद्यमान ऊपजे छे? एवी आशंकानुं समाधान करे छेः
जदि दव्वे पज्जाया वि विज्जमाणा तिरोहिदा संति
ता उप्पत्ति विहला पडपिहिदे देवदत्तिव्व ।।२४३।।
यदि द्रव्ये पयार्याः अपि विद्यमानाः तिरोहिताः सन्ति
तत् उत्पत्तिः विफला पटपिहिते देवदत्ते इव ।।२४३।।
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा