करवामां आवे छे अर्थात् द्रव्य धर्मी छे अने पर्याय धर्म छे. वस्तुपणे
ए बंने अभेद ज छे. कोई नैयायिकादिक धर्म-धर्मीमां सर्वथा भेद माने
छे; तेमनो मत प्रमाणबाधित छे.
हवे द्रव्य अने पर्यायमां सर्वथा भेद माने छे तेमना मतमां
दूषण दर्शावे छेः —
जदि वत्थुदो विभेदो पज्जयदव्वाण मण्णसे मूढ ।
तो णिरवेक्खा सिद्धी दोह्णं पि य पावदे णियमा ।।२४६।।
यदि वस्तुतः विभेदः पर्यायद्रव्ययोः मन्यसे मूढ ।
ततः निरपेक्षा सिद्धिः द्वयोः अपि च प्राप्नोति नियमात् ।।२४६।।
अर्थः — द्रव्य अने पर्यायमां (सर्वथा) भेद माने छे तेने कहे
छे के – हे मूढ! जो तुं द्रव्य अने पर्यायमां वस्तुपणाथी पण भेद माने
छे तो द्रव्य अने पर्याय बंनेनी निरपेक्ष सिद्धि नियमथी प्राप्त थाय छे.
भावार्थः — (एम मानतां) द्रव्य अने पर्याय जुदी जुदी वस्तु
ठरे छे पण तेमां धर्म-धर्मीपणुं ठरतुं नथी.
हवे जेओ विज्ञानने ज अद्वैत कहे छे अने बाह्य पदार्थ मानता
नथी. तेमना मतमां दूषण दर्शावे छेः —
जदि सव्वमेव णाणं णाणारूवेहिं संठिदं एक्कं ।
तो ण वि किं पि विणेयं णेयेण विणा कहं णाणं ।।२४७।।
यदि सर्वं एव ज्ञानं नानारूपैः संस्थितं एकम् ।
तत् न अपि किमपि विज्ञेयं ज्ञेयेन बिना कथं ज्ञानम् ।।२४७।।
अर्थः — जो बधीय वस्तु एक ज्ञान ज छे अने ते ज
नानारूपथी स्थित छे – रहे छे तो एम मानतां ज्ञेय कांई पण न ठर्युं,
अने ज्ञेय विना ज्ञान ज केवी रीते ठरशे?
भावार्थः — विज्ञानाद्वैतवादी – बौद्धमती कहे छे के — ‘ज्ञानमात्र ज
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा