Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 252-253.

< Previous Page   Next Page >


Page 135 of 297
PDF/HTML Page 159 of 321

 

background image
नथी.’ एम ते केवी रीते कहे छे? अथवा ‘कहेवावाळो पण नथी,’ तो
शून्य छे एम शी रीते जाणे छे?
भावार्थःपोते प्रगट विद्यमान छे अने कहे छे के ‘कांई पण
नथी’ पण एम कहेवुं ए मोटुं अज्ञान छे; तथा शून्यतत्त्व कहेवुं ए तो
मात्र प्रलाप (फोगट बकवाद) ज छे, कारण के कहेवावाळो ज नथी तो आ
कहे छे कोण? तेथी नास्तित्ववादी मात्र प्रलापी (मिथ्या बकवादी) छे.
किं बहुणा उत्तेण य जेत्तियमेत्ताणि संति णामाणि
तेत्तियमेत्ता अत्था संति ते णियमेण परमत्था ।।२५२।।
किं बहुना उक्तेन च यावन्मात्राणि सन्ति नामानि
तावन्मात्राः अर्थाः सन्ति च नियमेन परमार्थाः ।।२५२।।
अर्थःघणुं कहेवाथी शुं? जेटलां नाम छे तेटला ज नियमथी
पदार्थो परमार्थरूपे छे.
भावार्थःजेटलां नाम छे तेटला सत्यार्थरूप पदार्थो छे. घणुं
कहेवाथी बस थाओ! ए प्रमाणे पदार्थोनुं स्वरूप कह्युं.
हवे, ए पदार्थोने जाणवावाळुं ज्ञान छे तेनुं स्वरूप कहे छेः
णाणाधम्मेहिं जुदं अप्पाणं तह परं पि णिच्छयदो
जं जाणेदि सजोगं तं णाणं भण्णदे समए ।।२५३।।
नानाधर्मैः युतं आत्मानं तथा परं अपि निश्चयतः
यत् जानाति स्वयोग्यं तत् ज्ञानं भण्यते समये ।।२५३।।
अर्थःजे नाना धर्मो सहित आत्माने तथा परद्रव्योने पोतानी
योग्यतानुसार जाणे छे तेने सिद्धान्तमां निश्चयथी ज्ञान कहे छे.
भावार्थःपोताना आवरणना क्षयोपशम के क्षय अनुसार
जाणवायोग्य पदार्थ जे पोते तथा पर, तेने जे जाणे छे ते ज्ञान छे.
ए सामान्यज्ञाननुं स्वरूप कह्युं.
लोकानुप्रेक्षा ]
[ १३५