Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 262-263.

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नय वस्तुने साधतो नथी. एटला माटे अपेक्षाथी वस्तु अनेकान्त पण
छे, एम जाणवुं ए ज सम्यक्ज्ञान छे.
हवे ‘श्रुतज्ञान परोक्षपणे सर्व वस्तुने प्रकाशे छे’ एम कहे
छेः
सव्वं पि अणेयंतं परोक्खरूवेण जं पयासेदि
तं सुयणाणं भण्णदि संसयपहुदीहिं परिचत्तं ।।२६२।।
सर्वं अपि अनेकान्तं परोक्षरूपेण यत् प्रकाशयति
तत् श्रुतज्ञानं भण्यते संशयप्रभृतिभिः परित्यक्तम् ।।२६२।।
अर्थःजे ज्ञान सर्व वस्तुने अनेकान्तस्वरूप परोक्षरूपे प्रकाशे
जाणेकहे ते श्रुतज्ञान छे. ते श्रुतज्ञान संशय, विपरीतता अने
अनध्यवसायथी रहित छे एम सिद्धान्तमां कह्युं छे.
भावार्थःजे सर्व वस्तुने अनेकान्तरूप परोक्षरूपे प्रकाशे ते
श्रुतज्ञान छे. शास्त्रनां वचन सांभळवाथी अर्थने जाणे ते परोक्ष ज जाणे
छे; तथा शास्त्रमां बधीय वस्तुनुं स्वरूप अनेकान्तात्मक कह्युं छे एम सर्व
वस्तुने जाणे वा गुरुजनोना उपदेशपूर्वक जाणे तो संशयादिक पण रहे
नहि.
हवे श्रुतज्ञानना विकल्प (भेद) छे ते नय छे. तेमनुं स्वरूप कहे
छेः
लोयाणं ववहारं धम्मविवक्खाइ जो पसाहेदि
सुयणाणस्स वियप्पो सो वि णओ लिंगसंभूदो ।।२६३।।
लोकानां व्यवहारं धर्मविवक्षया यः प्रसाधयति
श्रुतज्ञानस्य विकल्पः सः अपि नयः लिङ्गसम्भूतः ।।२६३।।
अर्थःवस्तुना एक धर्मनी विवक्षाथी जे लोकोना व्यवहारने
साधे ते नय छे अने ते श्रुतज्ञाननो विकल्प (भेद) छे. वळी ते, लिंग
(चिह्न)थी ऊपज्यो छे.
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा