
के
शानुं? ए प्रमाणे द्रव्य-पर्यायनुं स्वरूप कही पछी सर्व पदार्थोने जाणवावाळा
प्रत्यक्ष-परोक्षस्वरूप ज्ञाननुं वर्णन कर्युं छे. अनेकान्तस्वरूप वस्तुने साधवावाळुं
श्रुतज्ञान छे, अने तेना भेद नय छे. ते वस्तुने अनेक धर्मस्वरूप साधे छे,
तेनुं वर्णन छे. वळी कह्युं छे के
करवावाळा विरला छे, पण विषयोने वश थवावाळा घणा छे.
सर्व सुलभ छे; परंतु मात्र एक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग पामवो
महा दुर्लभ छे
सम्यग्द्रष्टिनुं वर्णन छे, बे गाथाओमां दर्शनप्रतिमानु, एकतालीस गाथाओमां
व्रतप्रतिमानुं (श्रावकनां बार व्रतोनुं), बे गाथाओमां सामायिकप्रतिमानुं, छ
गाथाओमां प्रोषधप्रतिमानुं, त्रण गाथाओमां सचित्तत्यागप्रतिमानुं, बे
गाथाओमां रात्रिभोजनत्यागप्रतिमानुं, एक गाथामां ब्रह्मचर्यप्रतिमानुं, एक
गाथामां आरंभविरतिप्रतिमानुं, बे गाथाओमां परिग्रहत्यागप्रतिमानुं, बे
गाथाओमां अनुमतित्यागप्रतिमानुं अने बे गाथाओमां उद्दिष्टआहार-
त्यागप्रतिमानुं वर्णन छे
क्षमादि दशलक्षणधर्मनुं पालन करे छे ते दशलक्षणधर्मनुं भिन्न भिन्न वर्णन
कर्युं छे. अहिंसादि धर्मनी महत्तानुं वर्णन कर्युं छे, त्यां कह्युं छे के
धर्ममां शंकादि आठ दूषण न राखवां, पण निःशंकितादि आठ अंग सहित
धर्म सेववो.