वर्णन कर्युं छे. वळी द्रव्योना परस्पर कार्य-कारणभावनुं निरूपण करी कह्युं छे के — बधां द्रव्यो परिणामी, द्रव्य-पर्यायरूप, अनेकान्त स्वरूप छे, कारण के अनेकान्त विना कार्य-कारणभाव बनतो नथी अने कार्य-कारणभाव विना द्रव्य शानुं? ए प्रमाणे द्रव्य-पर्यायनुं स्वरूप कही पछी सर्व पदार्थोने जाणवावाळा प्रत्यक्ष-परोक्षस्वरूप ज्ञाननुं वर्णन कर्युं छे. अनेकान्तस्वरूप वस्तुने साधवावाळुं श्रुतज्ञान छे, अने तेना भेद नय छे. ते वस्तुने अनेक धर्मस्वरूप साधे छे, तेनुं वर्णन छे. वळी कह्युं छे के – प्रमाण-नयोथी वस्तुने साधी जे मोक्षमार्गने साधे छे एवा, तत्त्वने सांभळवावाळा, जाणवावाळा, भाववावाळा तथा धारण करवावाळा विरला छे, पण विषयोने वश थवावाळा घणा छे. — एम कही लोकभावनानुं कथन कर्युं छे.
त्यार पछी अढार गाथाओमां ‘बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा’नुं वर्णन कर्युं छे. तेमां संसारी जीव निगोदथी मांडीने अनेक पर्याय सदा पाम्या करे छे, जे सर्व सुलभ छे; परंतु मात्र एक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग पामवो महा दुर्लभ छे – एम कह्युं छे.
त्यार पछी एकसो छत्रीस गाथाओमां ‘धर्मानुप्रेक्षा’नुं वर्णन कर्युं छे. त्यां नेवुं गाथाओमां श्रावकधर्मनुं वर्णन छे. तेमां छव्वीस गाथाओमां अविरत- सम्यग्द्रष्टिनुं वर्णन छे, बे गाथाओमां दर्शनप्रतिमानु, एकतालीस गाथाओमां व्रतप्रतिमानुं (श्रावकनां बार व्रतोनुं), बे गाथाओमां सामायिकप्रतिमानुं, छ गाथाओमां प्रोषधप्रतिमानुं, त्रण गाथाओमां सचित्तत्यागप्रतिमानुं, बे गाथाओमां रात्रिभोजनत्यागप्रतिमानुं, एक गाथामां ब्रह्मचर्यप्रतिमानुं, एक गाथामां आरंभविरतिप्रतिमानुं, बे गाथाओमां परिग्रहत्यागप्रतिमानुं, बे गाथाओमां अनुमतित्यागप्रतिमानुं अने बे गाथाओमां उद्दिष्टआहार- त्यागप्रतिमानुं वर्णन छे
बेंताळीश गाथाओमां मुनिधर्मनुं वर्णन छे. त्यां रत्नत्रययुक्त थई मुनि उत्तम क्षमादि दशलक्षणधर्मनुं पालन करे छे ते दशलक्षणधर्मनुं भिन्न भिन्न वर्णन कर्युं छे. अहिंसादि धर्मनी महत्तानुं वर्णन कर्युं छे, त्यां कह्युं छे के — धर्म सेववो, पण ते पुण्यफळना अर्थे न सेववो, परंतु मात्र मोक्ष-अर्थे सेववो, धर्ममां शंकादि आठ दूषण न राखवां, पण निःशंकितादि आठ अंग सहित धर्म सेववो. — ए वगेरे भिन्न भिन्न वर्णन छे. अंतमां धर्मना फळनुं माहात्म्य वर्णवीने धर्मानुप्रेक्षानुं कथन समाप्त कर्युं छे.