
कर्तव्य प्रगट करी अंतमंगळ द्वारा आ ग्रंथ समाप्त कर्यो छे. ए प्रमाणे बधीय
मळीने चारसो एकाणुं गाथाप्रमाण आ ग्रंथ छे.
(गाथा ४८९) अपरनाम स्वामी कार्तिकेय छे. तेमना गुरुनुं नाम विनयसेन
हतुं. ‘कुमार’ नामना अनेक आचार्य तेमज विद्वान थई गया छे. तेमां आ
अनुप्रेक्षा-ग्रंथना कर्ता ‘स्वामी कुमार’ लगभग इसवी सन १००८मां दक्षिण
भारतने विषे विचरता हता
संस्कृत टीकामां ‘स्वामी कार्तिकेयमुनि क्रोंचराजाकृत उपसर्गने जीती देवलोक
गया’
छाबडा (इसवी सन १८०९) द्वारा संस्कृत टीकाना आधारे रचित ढूंढारी
भाषा टीका. वीर सं. २४४७, इ. स. १९२१मां ‘भारतीय जैन सिद्धान्त
प्रकाशिनी संस्था’ द्वारा प्रकाशित आ अनुप्रेक्षा-ग्रंथनी द्वितीयावृत्तिना आधारे
कलोलनिवासी स्व. श्री सोमचंदभाई अमथालाल शाह द्वारा वि. सं.
२००७मां आ गुजराती भाषानुवाद करवामां आव्यो छे. आ गुजराती
भाषानुवादनुं प्रथम संस्करण ‘श्रीमद् राजचंद्र ज्ञानप्रसारक ट्रस्ट’, अमदावाद
तरफथी वि. सं. २००७मां प्रकाशित करवामां आव्युं हतुं. ते गुजराती
संस्करणना आधारे, अध्यात्म ज्ञानवैराग्यनो अनुपम बोध आपनार सौराष्ट्रना
आध्यात्मिक संत परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीए ज्ञान, वैराग्य
ने भक्तिरसथी तरबोळ पोतानां स्वानुभवसुधास्यंदी अद्भुत प्रवचनोमां
‘स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा’नां जे गहन रहस्यो खोल्यां छे ते श्रवण करीने
मुमुक्षुहृदयोने अनुभव थयो के आ ग्रंथमां, द्रव्यस्वभावने यथावत् लक्षमां
राखीने, स्वामी कुमार (स्वामी कार्तिकेय) मुनिवरनो विशुद्ध ज्ञान-वैराग्यरस,