Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषयासक्तः अपि सदा सर्वारम्भेषु वर्त्तमानः अपि
मोहविलासः एषः इति सर्वं मन्यते हेयम् ।।३१४।।
अर्थःजोके अविरतसम्यग्द्रष्टि इन्द्रियविषयोमां आसक्त छे,
त्रसस्थावरजीवोनो घात जेमां थाय एवा सर्व आरंभमां वर्ती रह्यो छे,
तथा अप्रत्याख्यानावरणादि कषायोना तीव्र उदयोथी विरक्त थयो नथी
तो पण ते एम जाणे छे के आ मोहकर्मना उदयनो विलास छे, मारा
स्वभावमां ते नथी, उपाधि छे
रोगवत् छेतजवा योग्य छे. वर्तमान
कषायोनी पीडा सहन थती नथी तेथी असमर्थ बनी आ विषयोनुं सेवन
तथा घणा आरंभमां प्रवर्तवुं थाय छे एम ते माने छे.
णो इन्दियेसु विरदो णो जीवे थावरे तसे वापि
जो सद्दहदि जिणुत्तं सम्माइट्ठी अविरदो सो ।।
(गोम्मटसार जी० गा० २९)
जीवा चोद्दसभेया इंदियविसया तहठ्ठवीसं तु
जे तेसु णेव विरया असंजदा ते मुणेदव्वा ।।
(गोम्मटसार जी० गा० ४७७)
अर्थःजे इन्द्रियोना विषयोथी तथा त्रस-स्थावरजीवोनी हिंसाथी विरक्त
नथी, परंतु जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित प्रवचननुं श्रद्धान करे छे ते अविरतसम्यग्द्रष्टि
छे. संयम बे प्रकारनो छेः एक इन्द्रियसंयम तथा बीजो प्राणसंयम. इन्द्रिय
विषयोथी विरक्त थवाने इन्द्रियसंयम कहे छे तथा स्वपरजीवना प्राणोनी रक्षाने
प्राणसंयम कहे छे. आ (चोथा) गुणस्थानमां ए बंने संयमोमांथी कोई पण
संयम होतो नथी तेथी तेने अविरतसम्यग्द्रष्टि कहे छे. हा, एटलुं खरुं के
प्रयोजन विना कोई पण हिंसामां ते प्रवृत्त पण थतो नथी.
अर्थःचौद प्रकारना जीवसमासमां अने अठ्ठावीस प्रकारना इन्द्रिय
-विषयोमां जे विरक्त न थवुं तेने असंयम कहे छे. (गा० ४७७). पांच रस,
पांच वर्ण, बे गंध, आठ स्पर्श, सात स्वर अने एक मन ए इन्द्रियोना
अठ्ठावीस विषय छे. (जुओ
गो० जी० गा० ४७८)
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा