Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 318.

< Previous Page   Next Page >


Page 174 of 297
PDF/HTML Page 198 of 321

 

background image
अर्थःजे जीव दोषरहितने देव माने छे, सर्व जीवोनी दयाने
श्रेष्ठ धर्म माने छे तथा निर्ग्रन्थगुरुने गुरु माने छे ते प्रगटपणे
सम्यग्द्रष्टि छे.
भावार्थःसर्वज्ञ वीतराग अढार दोषोथी रहित देवने देव माने
छे, पण अन्य दोषरहित देव छे तेने ‘आ संसारी छे, पण मोक्षमार्गी
नथी’ एम जाणी वंदतो
पूजतो नथी, अहिंसामय धर्मने धर्म जाणे छे.
वळी देवताओने अर्थे यज्ञादिमां पशुने घात करी चढाववामां (लोको) धर्म
माने छे पण तेमां पाप ज जाणी पोते तेमां प्रवर्ततो नथी तथा ग्रंथी
(बाह्य
अंतरंग परिग्रहनी मूर्छापकड) सहित अनेक अन्यमती
वेषधारीओ छे वा काळदोषथी जैनमतमां पण वेषधारी निपज्या छे ते
सर्वने वेषधारी
पाखंडी जाणे पण तेने वंदेपूजे नहि, परंतु
सर्वपरिग्रहरहित होय तेमने ज गुरु मानी वंदनपूजन करे; कारण के
देव-गुरु-धर्मना आश्रयथी तो मिथ्या के सम्यक् उपदेश प्रवर्ते छे. ए कुदेव
-कुगुरु-कुधर्मनुं वंदन
पूजन तो दूर रहो तेना संसर्गमात्रथी पण श्रद्धान
बगडी जाय छे माटे सम्यग्द्रष्टि तो तेओनी संगति पण करतो नथी.
स्वामी समंतभद्रआचार्ये रत्नकरंडश्रावकाचारमां एम कह्युं छे के
भयथी,
आशाथी, स्नेहथी के लोभथी ए कुदेव, कुआगम तथा कुलिंगीवेषधारीने
प्रणाम के तेमनो विनय जे सम्यग्द्रष्टि छे ते करतो नथी, तेओना संसर्गथी
पण श्रद्धान बगडे छेधर्मनी प्राप्ति तो दूर ज रही एम जाणवुं.
हवे मिथ्याद्रष्टि केवो होय छे ते कहे छेः
दोससहियं पि देवं जीवहिंसाइसंजुदं धम्मं
गंथासत्तं च गुरुं जो मण्णदि सो हु कुद्दिट्ठी ।।३१८।।
दोषसहितं अपि देवं जीवहिंसादिसंयुतं धर्मम्
ग्रन्थासक्तं च गुरुं यः मन्यते सः स्फु टं कुदृष्टिः ।।३१८।।
भयाशास्नेहलोभाच्च कुदेवागमलिंगिनाम्
प्रणामं विनयं चैव न कुर्युः शुद्धदृष्टयः ।। (श्लोक ३०)
१७४ ]
[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा