Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 323-324.

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छे ते प्राणीने ते ज देशमां, ते ज काळमां, ते ज विधानथी नियमथी थाय
छे, तेने इन्द्र के जिनेन्द्र
तीर्थंकरदेव कोई पण अटकावी शकता नथी.
भावार्थःसर्वज्ञदेव सर्व द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावनी अवस्थाने
जाणे छे अने सर्वज्ञना ज्ञानमां जे प्रतिभास्युं छे ते ज नियमथी थाय
छे, पण तेमां हीनाधिक कांई थतुं नथी एम सम्यग्द्रष्टि विचारे छे.
हवे ‘एवो तो सम्यग्द्रष्टि छे पण तेमां संशय करे छे ते
मिथ्याद्रष्टि छे’ एम कहे छेः
एवं जो णिच्छयदो जाणदि दव्वाणि सव्वपज्जाए
सो सद्दिट्ठी सुद्धो जो संकदि सो हु कुद्दिठ्ठी ।।३२३।।
एवं यः निश्चयतः जानाति द्रव्याणि सर्वपर्यायान्
सः सदृष्ठि शुद्धः यः शंकते सः स्फु टं कुदृष्टिः ।।३२३।।
अर्थए प्रमाणे निश्चयथी सर्व जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म,
आकाश अने काळ ए छ द्रव्योने तथा ते द्रव्योनी सर्व पर्यायोने सर्वज्ञना
आगम अनुसार जे जाणे छे
श्रद्धान करे छे ते शुद्ध सम्यग्द्रष्टि छे तथा
जे ए प्रमाणे श्रद्धान नथी करतो पण तेमां शंकासंदेह करे छे ते
सर्वज्ञना आगमथी प्रतिकूल छेप्रगटपणे मिथ्याद्रष्टि छे.
हवे कहे छे के जे विशेष तत्त्वने न जाणतो होय पण जिन-वचनमां
आज्ञामात्र श्रद्धान करे छे तेने पण श्रद्धावान कहीए छीएः
जो ण वि जाणदि तच्चं सो जिणवयणे करेदि सद्दहणं
जं जिणवरेहिं भणियं तं सव्वमहं समिच्छामि ।।३२४।।
यः न अपि जानाति तत्त्वं सः जिनवचने करोति श्रद्धानम्
यत् जिनवरैः भणितं तत् सर्वं अहं समिच्छामि ।।३२४।।
अर्थःजे जीव ज्ञानावरणना विशिष्ट क्षयोपशम विना तथा
विशिष्ट गुरुना संयोग विना तत्त्वार्थने जाणी शकतो नथी ते जीव
जिनवचनमां आ प्रमाणे श्रद्धान करे छे के
‘जिनेन्द्रदेवे जे तत्त्व कह्युं छे
धर्मानुप्रेक्षा ]
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