
बीजानी पासे करावे नहि तथा कोई बीजो करतो होय तो तेने भलो
माने नहि तेने प्रथम अहिंसाणुव्रत होय छे. ते श्रावक केवो छे?
व्यापारादि कार्योमां दया सहित प्रवर्ते छे, प्राणीमात्रने पोता समान माने
छे, व्यापारादि कार्योमां हिंसा थाय छे ते बदल पोताना दिलमां पोतानी
निंदा करे छे, गर्हापूर्वक गुरुनी आगळ पोतानुं पाप कहे छे, जे पाप
लागे छे तेनुं गुरुनी आज्ञा प्रमाणे आलोचन, प्रतिक्रमण अने
प्रायश्चित्तादिक ले छे तथा जेमां घणी हिंसा थती होय एवां
महाआरंभयुक्त मोटा व्यापारादि कार्योने छोडतो थको प्रवर्ते छे.
परघात करतो नथी. जेमां त्रसजीवनो घात घणो थाय एवा मोटा आरंभने
छोडे अने अल्प आरंभमां त्रसघात थाय तेमां पण पोतानी निंदा
छे तेमां अतिचार टाळवाना पण आवी गया, कारण के परजीवने वध,
बंधन, अतिभारआरोपण, अन्नपाननिरोधनमां दुःख थाय छे, हवे
परजीवोने जो पोतासमान जाणे तो ते एम शा माटे करे? (न ज करे)