हिंसावचनं न वदति कर्कशवचनं अपि यः न भाषते ।
निष्ठुरवचनं अपि तथा न भाषते गुह्यवचनं अपि ।।३३३।।
हितमितवचनं भाषते सन्तोषकरं तु सर्वजीवानाम् ।
धर्म्मप्रकाशनवचनं अणुव्रती भवति सः द्वितीयः ।।३३४।।
अर्थः — जे हिंसानुं वचन न कहे, कर्कशवाक्य न कहे, निष्ठुरवचन
न कहे तथा परनां गुह्यवचन न कहे; (तो केवां वचन कहे?) स्व – परने
हितरूप, प्रमाणरूप, सर्व जीवोने संतोषदायक अने सद्धर्मने प्रकाशवावाळां
वचन कहे ते पुरुष बीजा सत्याणुव्रतनो धारक थाय छे.
भावार्थः — असत्यवचन अनेक प्रकारनां छे. तेमनो सर्वथा त्याग
तो सकलचारित्रधारक मुनिने होय छे अने अणुव्रतमां तो स्थूल (असत्य)नो
ज त्याग होय छे. जे वचनथी बीजा जीवोनो घात थाय एवां हिंसानां
वचन न कहे, जे वचन बीजाने कडवुं लागे – सांभळतां ज क्रोधादि उत्पन्न
थाय एवां कर्कशवचन न कहे, बीजाने उद्वेग, भय, शोक अने कलह ऊपजी
आवे एवां निष्ठुरवचन न कहे, अन्यना गुप्तकर्मना प्रकाशक वचन न कहे
तथा उपलक्षणथी अन्य एवां के जेमां अन्यनुं अहित थाय एवां वचन न
कहे. त्यारे केवां वचन कहे? कहे तो हित – मित वचन कहे, सर्व जीवोने
संतोष ऊपजे, तथा जेनाथी सद्धर्मनो प्रकाश थाय एवां कहे, वळी
मिथ्याउपदेश, रहोभ्याख्यान, कुटलेखक्रिया, न्यासापहार अने साकारमंत्र-
भेद ए पांचे अतिचारो गाथामां विशेषण कह्यां तेमां आवी जाय छे.*
अहीं तात्पर्य ए छे के — जेथी अन्य जीवोनुं बूरुं थाय, पोताना उपर
आपदा आवी पडे तथा वृथा प्रलापवाक्योथी पोताने पण प्रमाद वधे एवां
स्थूल असत्यवचन अणुव्रती श्रावक कहे नहि, बीजा पासे कहेवरावे नहि
तथा कहेवावाळाने भलो जाणे नहि. तेने आ बीजुं अणुव्रत होय छे.
* १. स्वर्गमोक्षना साधक क्रियाविशेषमां अन्य जीवोने अन्यथा प्रवर्तन कराववुं,
ए संबंधी जूठो उपदेश आपवो ते मिथ्योपदेश नामनो अतिचार छे.
२. स्त्री – पुरुषना एकांतमां थयेला क्रिया – आचरणनो बहार प्रकाश करवो ते
रहोभ्याख्यान अतिचार छे.
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा