Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 335-336.

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हवे त्रीजुं अचौर्याणुव्रत कहे छेेः
जो बहुमुल्लं वत्थुं अप्ययमुल्लेण णेव गिह्णेदि
वीसरियं पि ण गिह्णदि लाहे थोवे वि तूसेदि ।।३३५।।
जो परदव्वं ण हरदि मायालोहेण कोहमाणेण
दिढचित्तो सुद्धमई अणुव्वई सो हवे तिदिओ ।।३३६।।
यः बहुमूल्यं वस्तु अल्पमूल्येन नैव गृह्णाति
विस्मृतं अपि न गृह्णाति लाभे स्तोके अपि तुष्यति ।।३३५।।
यः परद्रव्यं न हरति मायालोभेन क्रोधमानेन
दृढचित्तः शुद्धमतिः अणुव्रती सः भवेत् तृतीयः ।।३३६।।
अर्थःजे श्रावक बहुमूल्य वस्तु अल्पमूल्यमां न ले, कपटथी
लोभथीक्रोधथीमानथी परनुं द्रव्य न ले, ते त्रीजा अणुव्रतधारी
श्रावक छे. केवो छे ते? द्रढ छे चित्त जेनुं, कारण पामवा छतां प्रतिज्ञा
बगाडतो नथी तथा शुद्ध छे
उज्ज्वळ छे बुद्धि जेनी (एवो छे).
भावार्थःसात व्यसनना त्यागमां चोरीनो त्याग तो कर्यो ज
छे. तेमां आ विशेष छे केबहुमूल्यनी वस्तु अल्पमूल्यमां लेवाथी
झगडो उत्पन्न थाय छे. कोण जाणे शुं कारणथी सामो माणस अल्प
मूल्यमां आपे छे? वळी परनी भूली गयेली वस्तु तथा मार्गमां पडेली
वस्तु पण न ले, एम न जाणे के पेलो नथी जाणतो पछी तेनो डर
३. परने ठगवा माटे अछताजूठा लेख लखवा, एवो एवो बधो, कुटलेखक्रिया
नामनो अतिचार छे.
४. कोई रूपियामहोरआभरणादि पोताने सोपीं गयो होय अने पाछळथी
तेनी गणतरी भूली अल्प प्रमाणमां मागवा लाग्यो तेने ‘हा ठीक छे तमारुं
आ छे ते लई जाओ’ एम कहेवुं ते न्यासापहार
अतिचार छे.
५. अंगविकार भृकुटीक्षेपादिकथी अन्यनो अभिप्राय जाणी इर्षाभावथी लोकमां
प्रगट करवो ते साकारमंत्रभेद नामनो अतिचार छे. आ सत्याणुव्रतना पांच
अतिचारदोष छे ते छोडवा योग्य छे. (अर्थप्रकाशिका टीका, पा. २८५)
धर्मानुप्रेक्षा ]
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