Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 337-338.

< Previous Page   Next Page >


Page 186 of 297
PDF/HTML Page 210 of 321

 

background image
शो? व्यापारमां थोडा ज नफाथी संतोष धारण करे, कारण घणां लालच
-लोभथी अनर्थ उत्पन्न थाय छे, कपट
प्रपंचथी कोईनुं धन ले नहि,
कोईने पोतानी पासे (जमा) धर्युं होय तो तेने न आपवाना भाव राखे
नहि, लोभथी
क्रोधथी परनुं धन खूंचवी ले नहि, मानथी कहे के ‘अमे
मोटा जोरावर छीए, लीधुं तो शुं थई गयुं?’ ए प्रमाणे परनुं धन
ले नहि. ए ज प्रमाणे परनी पासे लेवरावे नहि तथा कोई लेनारने
भलो जाणे नहि. वळी अन्य ग्रंथोमां तेना पांच अतिचार कह्या छे
ते आ प्रमाणेः (१) चोरने चोरी माटे प्रेरणा करवी, (२) तेनुं लावेलुं
धन लेवुं, (३) राज्यविरुद्ध कार्य करवुं, (४) वेपारमां तोल
बाट ओछां
अधिकां राखवा, (५) अल्पमूल्यनी वस्तु बहुमूल्यवान बतावी तेनो
व्यवहार करवो. ए पांच अतिचार छे. ए गाथामां कहेलां विशेषणोमां
आवी जाय छे. ए प्रमाणे निरतिचाररूपे स्तेय (चोरी)
त्यागव्रतने जे
पाळे छे ते त्रीजा अणुव्रतधारी श्रावक होय छे.
हवे ब्रह्मचर्याणुव्रतनुं व्याख्यान करे छेः
असुइमयं दुग्गंधं महिलादेहं विरच्चमाणो जो
रूवं लावण्णं पि य मणमोहणकारणं मुणइ ।।३३७।।
जो मण्णदि परमहिलं जणणीबहिणीसुआइसारिच्छं
मणवयणे काएण वि बंभवई सो हवे थूलो ।।३३८।।
अशुचिमयं दुर्गन्धं महिलादेहं विरज्यमानः यः
रूपं लावण्यं अपि च मनोमोहनकारणं जानाति ।।३३७।।
यः मन्यते परमहिलां जननीभगिनीसुतादिसदृशाम्
मनसा वचनेन कायेन अपि ब्रह्मव्रती सः भवेत् स्थूलः ।।३३८।।
अर्थःजे श्रावक स्त्रीना देहने अशुचिमयदुर्गंध जाणतो थको
तेना रूपलावण्यने पण (मात्र) मनने मोह उपजाववाना कारणरूप
जाणे छे अने तेथी तेनाथी विरक्त थई प्रवर्ते छे, जे परस्त्री मोटी होय
विरज्जमाणो एवो पण पाठ छे.
१८६ ]
[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा