Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 345.

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परदोषाणां ग्रहणं परलक्ष्मीनां समीहनं यत् च
परस्त्री-अवलोकः परकलहालोकनम् प्रथमम् ।।३४४।।
अर्थःबीजाना दोष ग्रहण करवा, अन्यनी लक्ष्मीधन
संपदानी वांच्छा करवी, परनी स्त्रीने राग सहित निरखवी (ताकी ताकीने
जोवी) तथा परना कलह जोवा इत्यादि कार्यो करवां ते प्रथम अनर्थदंड
छे.
भावार्थःपरना दोष ग्रहण करवामां पोताना भाव तो बगडे
छे पण पोतानुं प्रयोजन कांई पण सिद्ध थतुं नथी, परनुं बूरुं थाय
अने पोतानुं दुष्टपणुं मात्र ठरे छे. बीजानी संपदा देखी पोते तेनी
वांच्छा करे तो तेथी कांई पोतानी पासे ते आवी जती नथी एटले एथी
पण निष्प्रयोजन भाव ज बगडे छे. बीजानी स्त्रीने रागरहित (ताकी
ताकीने) जोवामां पण पोते त्यागी थईने निष्प्रयोजन भाव शा माटे
बगाडे? वळी परना कलह जोवामां पण कांई पोतानुं कार्य सिद्ध थतुं
नथी, परंतु ऊलटी कदाचित् पोताना उपर आफत आवी पडे छे. ए
प्रमाणे ए आदिथी मांडी जे जे कार्योमां पोताना भाव बगडे ते ते
बधो अपध्यान नामनो प्रथम अनर्थदंड छे अने ते अणुव्रतभंगना
कारणरूप छे. तेने छोडतां ज व्रत द्रढ टके छे.
हवे बीजो पापोपदेश नामनो अनर्थदंड कहे छेः
जो उवएसो दिज्जदि किसिपसुपालणवणिज्जपमुहेसु
पुरिसित्थीसंजोए अणत्थदंडो हवे बिदिओ ।।३४५।।
यः उपदेशः दीयते कृषिपशुपालनवाणिज्यप्रमुखेषु
पुरुषस्त्रीसंयोगे अनर्थदण्डः भवेत् द्वितीयः ।।३४५।।
अर्थःखेती करवी, पशुपालन, वाणिज्य करवुं तथा स्त्री
पुरुषनो संयोग जेम थाय तेम बताववो इत्यादि पापसहित कार्योनो
बीजाने उपदेश आपवो, तेनुं विधान (रीत) बताववुं के जेमां पोतानुं
प्रयोजन तो कांई सधाय नहि पण मात्र पाप ज उत्पन्न थाय ते बीजो
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा