Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 350.

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एवं पञ्चप्रकारं अनर्थदण्डं दुःखावहं नित्यम्
यः परिहरति ज्ञानी गुणव्रती सः भवेत् द्वितीयः ।।३४९।।
अर्थःजे ज्ञानी श्रावक आ प्रमाणे अनर्थदंडने निरंतर दुःखनां
उपजाववावाळां जाणीने छोडे छे ते बीजा गुणव्रतनो धारवावाळो श्रावक
थाय छे.
भावार्थःआ अनर्थदंडत्याग नामनुं गुणव्रत, अणुव्रतोनुं घणुं
उपकारी छे तेथी श्रावकोए तेनुं अवश्य पालन करवुं योग्य छे.
हवे भोगोपभोगपरिमाण नामनुं त्रीजुं गुणव्रत कहे छेः
जाणित्ता संपत्ती भोयणतंबोलवत्थमादीणं
जं परिमाणं कीरदि भोउवभोयं वयं तस्स ।।३५०।।
ज्ञात्वा सम्पत्तीः भोजनताम्बूलवस्त्रादीनाम्
यत् परिमाणं क्रियते भोगोपभोगं व्रतं तस्य ।।३५०।।
अर्थःजे पोतानी संपदा अने सामर्थ्य जाणी (विचारी)
भोजनतांबूलवस्त्र आदिनुं परिमाणमर्यादा करे ते श्रावकने
भोगोपभोगपरिमाण नामनुं गुणव्रत होय छे.
भावार्थःभोजनतांबूल आदि जे एक वार भोगववामां
आवे तेने भोग कहे छे. तथा वस्त्रघरेणां वगेरे वारंवार भोगववामां
आवे तेने उपभोग कहे छे. तेमनुं परिमाण यमरूप (जावजीव) पण
होय छे तथा हररोजना नियमरूप पण होय छे. त्यां यथाशक्ति पोतानां
साधन
सामग्रीनो विचार करी तेमनो यमरूप वा नियमरूप पण त्याग
करे छे. तेमां हररोज जरूरियात जाणी ते अनुसार (नियमरूप) त्याग
कर्या करे, ते अणुव्रतने घणो उपकारक छे.
हवे छती (मोजूद) भोगोपभोगनी वस्तुने छोडे छे तेनी प्रशंसा
करे छेः
धर्मानुप्रेक्षा ]
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