Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 357-358.

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किच्चा देसपमाणं सव्वंसावज्जवज्जिदो होउं
जो कुव्वदि सामइय सो मुणिसरिसो हवे ताव ।।३५७।।
बद्ध्वा पर्यंकं अथवा उर्ध्वेन ऊर्ध्वतः स्थित्वा
कालप्रमाणं कृत्वा इन्द्रियव्यापारवर्जितः भूत्वा ।।३५५।।
जिनवचनैकाग्रमनाः संवृतकायः च अञ्जलिं कृत्वा
स्वस्वरूपे संलीनः वन्दनार्थं विचिन्तयन् ।।३५६।।
कृत्वा देशप्रमाणं सर्वसावद्यवर्जितः भूत्वा
यः कुर्वते सामायिकं सः मुनिसदृशः भवेत् तावत् ।।३५७।।
अर्थःपर्यंकासन बांधी अथवा ऊभा खडगासने रहीने, काळनुं
प्रमाण करी, विषयोमां इन्द्रिओनो व्यापार नहि थवा अर्थे जिनवचनमां
एकाग्रचित्त करी, कायाने संकोची, हाथनी अंजलि जोडी, पोताना
स्वरूपमां लीन थयो थको अथवा सामायिक
वंदनाना पाठना अर्थने
चिंतवतो थको, क्षेत्रनुं परिमाण करी सर्व सावद्ययोग जे घरव्यापारादि
पापयोग तेनो त्याग करी, पापयोगरहित बनी सामायिकमां प्रवर्ते ते
श्रावक ते काळमां मुनि जेवो छे.
भावार्थःआ शिक्षाव्रत छे. त्यां ए अर्थ सूचित छे के जे
सामायिक छे तेमां सर्व राग-द्वेषरहित बनी, बहारनी सर्व
पापयोगक्रियाथी रहित थई, पोताना आत्मस्वरूपमां तल्लीन बनी मुनि
प्रवर्ते छे. आ सामायिकचारित्र मुनिनो धर्म छे. ए ज शिक्षा श्रावकने
पण आपवामां आवे छे के सामायिकना काळनी मर्यादा करी ते काळमां
मुनिनी माफक प्रवर्ते छे; कारण के मुनि थया पछी आ प्रमाणे सदा
रहेवुं थशे. ए अपेक्षाथी श्रावकने ते काळमां मुनि जेवो कह्यो छे.
हवे प्रोषधोपवास नामनुं बीजुं शिक्षाव्रत कहे छेः
ण्हाणविलेवणभूसणइत्थीसंसग्गगंधधूवादी
जो परिहरेदि णाणी वेरग्गाभूसणं किच्चा ।।३५८।।
धर्मानुप्रेक्षा ]
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