Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 361.

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सिक्खावयं च तदियं तस्स हवे सव्वसिद्धिसोक्खयरं
दाणं चउव्विहं पि य सव्वे दाणाण सारयरं ।।३६१।।
त्रिविधे पात्रे सदा श्रद्धादिगुणैः संयुतः ज्ञानी
दानं यः ददाति स्वकं नवदानविधिभिः संयुक्तः ।।३६०।।
शिक्षाव्रतं च तृतीयं तस्य भवेत् सर्वसिद्धिसौख्यकरम्
दानं चतुर्विधं अपि च सर्वदानानां सारतरम् ।।३६१।।
अर्थःजे ज्ञानीश्रावक, उत्तममध्यमजघन्य ए त्रण प्रकारना
पात्रोने अर्थे दातारना श्रद्धाआदि गुणोथी युक्त बनी पोताना हाथथी
नवधाभक्तिसहित थईने दररोज दान आपे छे ते श्रावकनुं त्रीजुं
अतिथिसंविभागशिक्षाव्रत होय छे. ए दान केवुं छे? आहार, अभय,
औषध अने शास्त्रदानना भेदथी चार प्रकारनुं छे. वळी अन्य जे लौकिक
धनादिकना दान करतां आ दान अतिशय साररूप उत्तम छे. सर्व
सिद्धिसुखनुं उपजाववावाळुं छे.
भावार्थःत्रण प्रकारना पात्रोमां उत्कृष्ट तो मुनि, मध्यम
अणुव्रतीश्रावक तथा जघन्य अविरतसम्यग्द्रष्टि छे. वळी दातारना श्रद्धा,
तुष्टि, भक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा अने शक्ति ए सात गुणो छे.
वळी अन्य प्रकार आ प्रमाणे पण छे
आ लोकना फळनी वांच्छा
विनानो, क्षमावान, कपटरहित, अन्यदातानी इर्षारहित, आप्या पछी ते
संबंधी विषादविनानो, आप्याना हर्षवाळो, अने गर्वविनानो ए प्रमाणे
पण सात गुणो कह्या छे. वळी प्रतिग्रह, उच्चस्थान, पादप्रक्षालन,
पूजन, प्रणाम, मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि तथा आहारशुद्धि ए
प्रमाणे नवधाभक्ति छे. ए रीते दातारना गुणोसहित नवधाभक्तिपूर्वक
पात्रने रोज चार प्रकारनां दान जे आपे छे तेने त्रीजुं शिक्षाव्रत होय
छे. आ पण मुनिपणानी शिक्षा माटे
के आपवानुं शीखे ते प्रमाणे
१. आ दातारना सात गुणो तथा नवधाभक्ति संबंधी विशेष वर्णन माटे जुओ
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक११३
धर्मानुप्रेक्षा ]
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