Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 365-366.

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औषधशास्त्रअभय ए त्रणे दान आप्यां एम समजवुं.
भावार्थःभूखतरसरोग मटवाथी आहारदान ज औषधदान
तुल्य थयुं, आहारना बळथी सुखपूर्वक शास्त्राभ्यास थवाथी ज्ञानदान
पण ए ज (भोजनदान) थयुं, तथा आहारथी ज प्राणोनी रक्षा थाय
छे माटे ए ज अभयदान थयुं. ए प्रमाणे एक भोजनदानमां त्रणे
दान गर्भित थाय छे.
हवे फरीथी दाननुं माहात्म्य कहे छेः
इहपरलोयणिरीहो दाणं जो देदि परमभत्तीए
रयणत्तए सुठविदो संघो सयलो हवे तेण ।।३६५।।
उत्तमपत्तविसेसे उत्तमभत्तीए उत्तमं दाणं
एयदिणे वि य दिण्णं इंदसुहं उत्तमं देदि ।।३६६।।
इहपरलोकनिरीहः दानं यः ददाति परमभक्त्या
रत्नत्रये सुस्थापितः संघः सकलः भवेत् तेन ।।३६५।।
उत्तमपात्रविशेषे उत्तमभक्त्या उत्तमं दानं
एकदिने अपि च दत्तं इन्द्रसुखं उत्तमं ददाति ।।३६६।।
अर्थःजे पुरुष (श्रावक) आलोकपरलोकना फळनी वांच्छा-
रहित बनी परमभक्तिपूर्वक संघना अर्थे दान आपे छे ते पुरुष सर्व
संघने रत्नत्रय अर्थात् सम्यग्दर्शन
ज्ञानचारित्रमां स्थाप्यो. वळी
उत्तमपात्रविशेषना अर्थे उत्तमभक्तिपूर्वक एक दिवस पण आपेलुं
उत्तमदान उत्कृष्ट इन्द्रपदनां सुखने आपे छे.
भावार्थःदान आपवाथी चतुर्विध संघनी स्थिरता थाय छे
एटले दान आपवावाळाए मोक्षमार्ग ज चलाव्यो कहीए छीए. वळी
उत्तमपात्र, दातानी उत्तमभक्ति अने उत्तमदान ए बधी विधि
मळी जतां तेनुं उत्तम ज फळ थाय छे
इन्द्रादिपदनुं सुख प्राप्त
थाय छे.
धर्मानुप्रेक्षा ]
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