Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अर्थःजे सम्यग्द्रष्टि श्रावक बार आवर्त सहित, चार प्रणाम
सहित, बे नमस्कार करतो थको प्रसन्न छे. आत्मा जेनो एवो धीर
द्रढचित्त बनीने कायोत्सर्ग करे छे अने त्यां पोताना चैतन्यमात्र
शुद्धस्वरूपने ध्यावतोचिंतवतो रहे छे, वा जिनबिंबने चिंतवतो रहे छे
वा परमेष्ठिवाचक पांच नमोकारने चिंतवतो रहे छे, वा कर्मोदयना
रसनी जातिने चिंतवतो रहे छे तेने सामायिकव्रत होय छे.
भावार्थःसामायिकनुं वर्णन पहेलां शिक्षाव्रतमां कर्युं हतुं के
‘रागद्वेष छोडी समभावपूर्वक क्षेत्रकाळआसनध्यानमनशुद्धि
वचनशुद्धिकायशुद्धि सहित काळनी मर्यादा करी एकान्तस्थानमां बेसी
सर्वे सावद्ययोगनो त्याग करी धर्मध्यानरूप प्रवर्ते; एम कह्युं हतुं. अहीं
विशेष ए कह्युं के ‘कायाथी ममत्व छोडी कायोत्सर्ग करे त्यां आदि
अंतमां बे नमस्कार करे, चार दिशा सन्मुख थई चार शिरोनति करे,
एक एक शिरोनतिमां मन-वचन-कायनी शुद्धतानी सूचनारूप त्रण त्रण
एम बार आवर्त करे. ए प्रमाणे करी कायाथी ममत्व छोडी
निजस्वरूपमां लीन थाय, वा जिनप्रतिमामां उपयोगने लीन करे, वा
पंचपरमेष्ठिवाचक अक्षरोनुं ध्यान करे तथा (एम करतां) उपयोग कोई
हरकत तरफ जाय तो त्यां कर्मोदयनी जातिने चिंतवे के आ
शातावेदनीयनुं फळ छे, वा आ अशातावेदनीयनी जाति छे, वा आ
अंतरायना उदयनी जाति छे इत्यादि कर्मना उदयने चिंतवे? आटलुं
विशेष कह्युं. वळी आ प्रमाणे पण विशेष जाणवुं के
शिक्षाव्रतमां तो
मन-वचन-काय संबंधी कोई अतिचार पण लागे छे, वा काळनी
मर्यादा आदि क्रियामां हीन-अधिक पण थाय छे, अने अहीं प्रतिमानी
प्रतिज्ञा छे ते तो अतिचार रहित शुद्ध पळाय छे, उपसर्गादिना
निमित्तथी प्रतिज्ञाथी चळतो नथी एम जाणवुं. आना पांच अतिचार
छे. मन-वचन-कायनुं अस्थिर थवुं, अनादर करवो, भूली जवुं ए
(पांच) अतिचार न लगावे. ए प्रमाणे बार भेदनी अपेक्षाए आ
सामायिकप्रतिमा चोथो भेद थयो.
धर्मानुप्रेक्षा ]
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