
रसनी जातिने चिंतवतो रहे छे तेने सामायिकव्रत होय छे.
विशेष ए कह्युं के ‘कायाथी ममत्व छोडी कायोत्सर्ग करे त्यां आदि
एम बार आवर्त करे. ए प्रमाणे करी कायाथी ममत्व छोडी
निजस्वरूपमां लीन थाय, वा जिनप्रतिमामां उपयोगने लीन करे, वा
पंचपरमेष्ठिवाचक अक्षरोनुं ध्यान करे तथा (एम करतां) उपयोग कोई
हरकत तरफ जाय तो त्यां कर्मोदयनी जातिने चिंतवे के आ
शातावेदनीयनुं फळ छे, वा आ अशातावेदनीयनी जाति छे, वा आ
अंतरायना उदयनी जाति छे इत्यादि कर्मना उदयने चिंतवे? आटलुं
विशेष कह्युं. वळी आ प्रमाणे पण विशेष जाणवुं के
मर्यादा आदि क्रियामां हीन-अधिक पण थाय छे, अने अहीं प्रतिमानी
प्रतिज्ञा छे ते तो अतिचार रहित शुद्ध पळाय छे, उपसर्गादिना
निमित्तथी प्रतिज्ञाथी चळतो नथी एम जाणवुं. आना पांच अतिचार
छे. मन-वचन-कायनुं अस्थिर थवुं, अनादर करवो, भूली जवुं ए
(पांच) अतिचार न लगावे. ए प्रमाणे बार भेदनी अपेक्षाए आ
सामायिकप्रतिमा चोथो भेद थयो.