Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 385-386.

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-वचन-कायाथी अभिलाष न करे ते ब्रह्मचर्यव्रतनो धारक थाय छे. केवो
छे ते? दायनो पालन करवावाळो छे
भावार्थःसर्व स्त्रीओनो मन-वचन-काय तथा कृत-कारित
-अनुमोदनाथी सर्वथा त्याग करे ते ब्रह्मचर्यप्रतिमा छे.
हवे आरंभविरतिप्रतिमा कहे छेः
जो आरंभं ण कुणदि अण्णं कारयदि णेव अणुमण्णे
हिंसासंतट्ठमणो चत्तारंभो हवे सो हि ।।३८५।।
यः आरम्भं न करोति अन्यं कारयति नैव अनुमन्यते
हिंसासंत्रस्तमनाः त्यक्तारम्भः भवेत् सः हि ।।३८५।।
अर्थःजे श्रावक गृहकार्यसंबंधी कांई पण आरंभ करतो नथी,
अन्य पासे करावतो नथी तथा कोई करतो होय तेने भलो जाणतो नथी
ते निश्चयथी आरंभत्यागी होय छे. केवो छे ते? हिंसाथी भयभीत छे
मन जेनुं एवो छे.
भावार्थःमन-वचन-कायाथी तथा कृत-कारित-अनुमोदनाथी
गृहकार्यना आरंभनो त्याग करे छे ते आरंभत्याग प्रतिमाधारी श्रावक होय
छे. आ प्रतिमा आठमी छे अने बार भेदोमां आ नवमो भेद छे.
हवे परिग्रहत्यागप्रतिमा कहे छेः
जो परिवज्जइ गंथं अव्भंतर बाहिरं च साणंदो
पावं ति मण्णमाणो णिग्गंथो सो हवे णाणी ।।३८६।।
यः परिवर्जयति ग्रन्थं अभ्यन्तरबाह्यं च सानन्दः
पापं इति मन्यमानः निर्ग्रंथः सः भवेत् ज्ञानी ।।३८६।।
अर्थःजे ज्ञानी सम्यग्द्रष्टिश्रावक अभ्यंतर तथा बाह्य एवा
बे प्रकारना परिग्रह, के जे पापना कारणरूप छे एम मानतो थको,
आनंदपूर्वक छोडे छे ते परिग्रहत्यागी श्रावक होय छे.
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा