Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 387-388.

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भावार्थःआभ्यंतरपरिग्रहमां मिथ्यात्व, अनंतानुबंधीकषाय
तथा अप्रत्याख्यानावरणकषाय तो पहेलां छूटी गया छे, हवे
प्रत्याख्यानावरण अने तेनी साथे लागेल हास्यादिक तथा वेदने घटाडे छे,
वळी बाह्यथी धन-धान्यादि सर्वनो त्याग करे छे, परिग्रहत्यागमां घणो
आनंद माने छे, कारण के जेने साचो वैराग्य होय छे ते परिग्रहने पापरूप
तथा मोटी आपदारूप देखे छे अने तेना त्यागमां घणुं सुख माने छे.
बाहिरगंथविहीणा दलिद्दमणुआ सहावदो होंति
अब्भंतरगंथं पुण ण सक्कदे को वि छंडेदुं ।।३८७।।
बाह्यग्रन्थविहीनाः दरिद्रमनुष्याः स्वभावतः भवन्ति
अभ्यन्तरग्रन्थं पुनः न शक्नोति कः अपि त्यक्तुम् ।।३८७।।
अर्थःबाह्यपरिग्रहरहित तो दरिद्रमनुष्य स्वभावथी ज होय
छे एटले एवा त्यागमां आश्चर्य नथी पण आभ्यंतरपरिग्रहने छोडवा
माटे कोई पण समर्थ थतुं नथी.
भावार्थःजे आभ्यंतरपरिग्रहने छोडे छे तेनी ज महत्ता छे.
सामान्यपणे आभ्यंतरपरिग्रह ममत्वभाव छे, एने जे छोडे छे तेने
परिग्रहनो त्यागी कहीए छीए. ए प्रमाणे परिग्रहत्याग प्रतिमानुं स्वरूप
कह्युं. आ प्रतिमा नवमी छे तथा बार भेदोमां आ दशमो भेद छे.
हवे अनुमोदनविरतिप्रतिमा कहे छेः
जो अणुमणणं ण कुणदि गिहत्थकज्जेसु पावमूलेसु
भवियव्वं भावंतो अणुमणविरओ हवे सो दु ।।३८८।।
यः अनुमननं न करोति गृहस्थकार्येषु पापमूलेषु
भवितव्यं भावयन् अनुमनविरतः भवेत् सः तु ।।३८८।।
अर्थःजे श्रावक, पापना मूळ जे गृहस्थनां कार्यो तेमां,
अनुमोदना न करेकेवी रीते? ‘जे भवितव्य छे तेम ज थाय छे’ एवी
भावना करतो थकोते अनुमोदनविरतिप्रतिमाधारी श्रावक छे.
धर्मानुप्रेक्षा ]
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