Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पण निरतिचार व्रत पालन थतां नथी, तेथी तेने पाक्षिक ज कह्यो छे.
वळी नैष्ठिक थाय छे त्यारे अनुक्रमे प्रतिमानी प्रतिज्ञा पळाय छे.
आने अप्रत्याख्यानावरण कषायनो अभाव थयो छे तेथी पांचमा
गुणस्थाननी प्रतिमा अतिचार रहित पळाय छे. त्यां
प्रत्याख्यानावरणकषायना तीव्र
मंद भेदोथी अगियार प्रतिमाना भेद छे.
जेम जेम कषाय मंद थतो जाय तेम तेम आगली प्रतिमानी प्रतिज्ञा
थती जाय छे. त्यां एम कह्युं छे के घरनुं स्वामिपणुं छोडी गृहकार्य
तो पुत्रादिकने सोंपे तथा पोते कषायहानिना प्रमाणमां प्रतिमानी प्रतिज्ञा
अंगीकार करतो जाय. ज्यां सुधी सकलसंयम न ग्रहण करे त्यां सुधी
अगियारमी प्रतिमा सुधी नैष्ठिक श्रावक कहेवाय छे. ज्यारे मरणकाळ
आव्यो जाणे त्यारे आराधन सहित थई, एकाग्रचित्त करी, परमेष्ठीना
चिंतवनमां रही समाधिपूर्वक प्राण छोडे ते साधक कहेवाय छे. एवुं
व्याख्यान छे.
वळी कह्युं छे के गृहस्थ, द्रव्यनुं जे उपार्जन करे तेना छ भाग
करे. एक भाग तो धर्मना अर्थे आपे, एक भाग कुटुंबना पोषणमां
आपे, एक भाग पोताना भोगमां खरच करे, एक भाग पोताना
स्वजनसमूहना व्यवहारमां खर्चे अने बाकीना बे भाग अनामत भंडार
तरीके राखे. ते द्रव्य कोई मोटा पूजन वा प्रभावनामां अथवा काळ
दुकाळमां काम आवे. ए प्रमाणे करवाथी गृहस्थने आकुळता ऊपजे
नहि अने धर्म साधी शकाय. अहीं संस्कृतटीकाकारे घणुं कथन कर्युं छे
तथा पहेलांनी गाथाना कथनमां अन्य ग्रंथोनां कथन सधाय छे. कथन
घणुं कर्युं छे ते बधुं संस्कृत टीकाथी जाणवुं, अहीं तो गाथानो ज अर्थ
संक्षेपमां लख्यो छे, विशेष जाणवानी इच्छा होय तेणे रयणसार,
वसुनंदीकृत श्रावकाचार, रत्नकरंडश्रावकाचार, पुरुषार्थसिद्धियुपाय,
अमितगतिश्रावकाचार अने प्राकृतदोहाबंधश्रावकाचार इत्यादि ग्रंथोथी
जाणवुं. अहीं संक्षेपमां कथन कर्युं छे. ए प्रमाणे बारभेदरूप
श्रावकधर्मनुं वर्णन कर्युं.
धर्मानुप्रेक्षा ]
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