भावार्थः — उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम,
तप, त्याग, आकिंचन्य अने ब्रह्मचर्य – एवा दस प्रकारना मुनिधर्म छे.
तेमनुं जुदुं जुदुं व्याख्यान हवे करे छे.
हवे प्रथम ज उत्तम क्षमाधर्म कहे छेः —
कोहेण जो ण तप्पदि सुरणरतिरिएहिं कीरमाणे वि ।
उवसग्गे वि रउद्दे तस्स खमा णिम्मला होदि ।।३९४।।
क्रोधेन यः न तप्यते सुरनरतिर्यग्भिः क्रियमाणे अपि ।
उपसर्गे अपि रौद्रै तस्य क्षमा निर्मला भवति ।।३९४।।
अर्थः — जे मुनि देव – मनुष्य – तिर्यंचादि द्वारा रौद्र भयानक घोर
उपसर्ग थवा छतां पण क्रोधथी तप्तायमान न थाय ते मुनिने निर्मल
क्षमा होय छे.
भावार्थः — जेम श्रीदत्तमुनि व्यंतरदेवकृत उपसर्गने जीती
केवळज्ञान उपजावी मोक्ष गया, चिलातीपुत्रमुनि व्यंतरकृत उपसर्गने
जीती सर्वार्थसिद्धि गया, स्वामिकार्तिकेयमुनि क्रोंचराजाकृत उपसर्गने जीती
देवलोक गया, गुरुदत्तमुनि कपिलब्राह्मणकृत उपसर्गने जीती मोक्ष गया,
श्रीधन्यमुनि चक्रराजकृत उपसर्गने जीती केवळज्ञान उपजावी मोक्ष गया,
पांचसो मुनि दंडकराजाकृत उपसर्गने जीती सिद्धिने (मोक्षने) प्राप्त थया,
गजसुकुमारमुनि पांशुलश्रेष्ठिकृत उपसर्गने जीती सिद्धिने प्राप्त थया,
चाणक्य आदि पांचसो मुनि मंत्रीकृत उपसर्गने जीती मोक्ष गया,
सुकुमालमुनि शियालणीकृत उपसर्गने सहन करी देव थया, श्रेष्ठिना
बावीस पुत्रो नदीना प्रवाहमां पद्मासने शुभध्यान करी मरीने देव थया,
सुकौशलमुनि वाघणकृत उपसर्गने जीती सर्वार्थसिद्धि गया तथा
श्रीपणिकमुनि जळनो उपसर्ग सहीने मुक्त थया, तेम देव
– मनुष्य – पशु
अने अचेतनकृत उपसर्ग सहन कर्या छतां त्यां क्रोध न कर्यो तेमने उत्तम
क्षमा थई. ए प्रमाणे उपसर्ग करवावाळा उपर पण क्रोध न ऊपजे
त्यारे उत्तम क्षमा होय छे.
धर्मानुप्रेक्षा ]
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