Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 395.

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त्यां क्रोधनुं निमित्त आवतां एवुं चिंतवन करे के जो कोई मारा
दोष कहे छे ते जो मारामां विद्यमान छे तो ते शुं खोटुं कहे छे?
एम विचारी क्षमा करवी. वळी जो मारामां दोष नथी ए तो जाण्या
विना कहे छे त्यां अज्ञानी उपर कोप शो करवो?एम विचारी क्षमा
करवी; अज्ञानीनो तो बाळस्वभाव चिंतववो, एटले बाळक तो प्रत्यक्ष
पण कहे अने आ तो परोक्ष ज कहे छे ए ज भलुं छे, वळी प्रत्यक्ष
पण कुवचन कहे तो आम विचारवुं के बाळक तो ताडन पण करे अने
आ तो कुवचन ज कहे छे
ताडतो नथी ए ज भलुं छे, वळी जो
ताडन करे तो आम विचारवुं केबाळक अज्ञानी तो प्राणघात पण करे
अने आ तो मात्र ताडन ज करे छे, पण प्राणघात तो नथी कर्यो
ए ज भलुं छे; वळी प्राणघात करे तो एम विचारवुं के अज्ञानी तो
धर्मनो पण विध्वंस (नाश) करे छे अने आ तो प्राणघात करे छे, पण
धर्मनो विध्वंस तो नथी करतो. वळी विचारे के में पूर्वे पापकर्म
उपजाव्यां तेनुं आ दुर्वचनादि उपसर्ग
फळ छे. आ मारो ज अपराध
छे बाकी अन्य तो निमित्तमात्र छे, इत्यादि चिंतवन करतां उपसर्गादिना
निमित्तथी क्रोध उत्पन्न थतो नथी अने उत्तम क्षमाधर्म सधाय छे.
हवे उत्तम मार्दवधर्म कहे छेः
उत्तमणाणपहाणो उत्तमतवयरणकरणसीलो वि
अप्पाणं जो हीलदि मद्दवरयणं भवे तस्स ।।३९५।।
उत्तमज्ञानप्रधानः उत्तमतपश्चरणक रणशीलः अपि
आत्मानं यः हीलति मार्दवरत्नं भवेत् तस्य ।।३९५ ।।
अर्थःजे मुनि उत्तमज्ञानथी तो प्रधान होय तथा उत्तम
तपश्चरण करवानो जेनो स्वभाव होय तोपण पोताना आत्माने मदरहित
करे
अनादररूप करे ते मुनिने उत्तम मार्दवधर्मरत्न होय छे.
भावार्थःसकल शास्त्रने जाणवावाळो पंडित होय तोपण
ज्ञानमद न करे. त्यां आम विचारे के माराथी मोटा अवधि
२२० ]
[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा