Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तेने अन्य प्रकारथी कहेजेम छे तेम न कहे, पोतानुं मानभंग थाय
तेथी जेम तेम कहे. वळी व्यवहार जे भोजनादि व्यापार तथा पूजा
प्रभावनादि व्यवहार तेमां पण जिनसूत्र अनुसार वचन कहे पण
पोतानी इच्छानुसार जेम तेम न कहे. अहीं दस प्रकारथी सत्यनुं वर्णन
छे
नामसत्य, रूपसत्य, स्थापनासत्य, प्रतीतिसत्य, संवृत्तिसत्य,
संयोजनासत्य, जनपदसत्य, देशसत्य, भावसत्य तथा समयसत्य. हवे
मुनिराजनो मुनिजननी तथा श्रावकनी साथे वचनालापरूप व्यवहार छे
त्यां घणो वचनालाप थाय तोपण सूत्रसिद्धान्तानुसार आ दस प्रकारथी
सत्यरूप वचननी प्रवृत्ति होय छे.
१. गुण विना पण वक्तानी इच्छाथी कोई वस्तुनुं नामसंज्ञा
करवामां आवे ते नामसत्य छे.
२. रूपमात्रथी कहेवामां आवे अर्थात् चित्रमां जेम कोईनुं रूप
आलेखी कहेवामां आवे के ‘आ सफेद वर्णवाळो फलाणो पुरुष छे; ते
रूपसत्य छे.
३. कोई प्रयोजन अर्थे कोईनी मूर्ति स्थापी कहेवामां आवे ते
स्थापनासत्य छे.
४. कोई प्रतीतिना अर्थे आश्रयपूर्वक कहेवामां आवे ते
प्रतीतिसत्य छे. जेम ‘ताल’ एवुं परिमाण विशेष छे. तेना आश्रयथी
कहेवामां आवे के ‘आ तालपुरुष छे’, अथवा लांबा कहे तो नानानी
प्रतीति (आश्रय) करीने कहे.
५. लोकव्यवहारना आश्रयथी कहे ते संवृत्तिसत्य छे. जेम
कमळनी उत्पत्तिनां अनेक कारणो छे तो पण पंकमां थयुं छे माटे पंकज
कहीए छीए.
६. वस्तुने अनुक्रमे स्थापवानुं वचन कहे ते संयोजनासत्य छे. जेम
दशलक्षणनुं मंडल करे तेमां अनुक्रमपूर्वक चूर्णना कोठा करे अने कहे आ
उत्तम क्षमानो (कोठो) छे, इत्यादि जोडरूप नाम कहे,
अथवा बीजुं द्रष्टान्तः जेम झवेरी मोतीनी लटो करे तेमां मोतीओनी संज्ञा
धर्मानुप्रेक्षा ]
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