Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 417.

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यः स्वर्गसुखनिमित्तं धर्मं न आचरति दुःसहतपोभिः
मोक्षं समीहमानः निःकाङ्क्षा जायते तस्य ।।४१६।।
अर्थःजे सम्यग्द्रष्टि दुर्धर तप करवा छतां पण स्वर्गनां
सुखोने माटे धर्म आचरतो नथी तेने निःकांक्षितगुण होय छे. केवो छे
ते? ते दुर्धर तप करी मात्र एक मोक्षने ज वांच्छे छे.
भावार्थःजे मात्र एक मोक्षाभिलाषाथी ज धर्मनुं आचरण
करे छे, दुर्धर तप करे छे, पण स्वर्गादिकनां सुखोने वांच्छतो नथी तेने
निःकांक्षितगुण होय छे.
हने निर्विचिकित्सागुण कहे छेः
दहविहधम्मजुदाणं सहावदुग्गंधअसुइदेहेसु
जं णिंदणं ण कीरदि णिव्विदिगिंछागुणो सो हु ।।४१७।।
दशविधधर्मयुतानां स्वभावदुर्गन्धाशुचिदेहेषु
यत् निन्दनं न क्रियते निर्विचिकित्सागुणः सः स्फु टम् ।।४१७।।
अर्थःप्रथम तो देहनो स्वभाव ज दुर्गन्धअशुचिमय छे
अने बहारमां स्नानादि संस्कारना अभावथी वधारे अशुचिदुर्गन्धरूप
देखाय छे एवा, दश प्रकारना यतिधर्म संयुक्त, मुनिराजना देहने देखीने
तेमनी अवज्ञा न करवी ते निर्विचिकित्सागुण छे.
भावार्थःसम्यग्द्रष्टिपुरुषनी द्रष्टि मुख्यपणे सम्यग्दर्शन
ज्ञानचारित्ररूप गुणो उपर पडे छे, देह तो स्वभावथी ज अशुचि
दुर्गन्धरूप छे, तेथी मुनिराजना देह तरफ शुं देखे? तेमना रत्नत्रय
(सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र) तरफ देखे तो ग्लानि शी रीते आवे? ए
ग्लानि न उपजाववी ते ज निर्विचिकित्सागुण छे. पण जेने सम्यक्त्वगुण
प्रधान नथी तेनी द्रष्टि पहेली देह उपर पडतां ज तेने ग्लानि ऊपजे
छे, अने त्यारे आ गुण तेने नथी (एम समजवुं).
हवे अमूढद्रष्टिगुण कहे छेः
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा