Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 424.

< Previous Page   Next Page >


Page 244 of 297
PDF/HTML Page 268 of 321

 

background image
प्रकारनी युक्तिथी वादिजनोनुं निराकरण करी वा अतिशयचमत्कार
पूजाप्रतिष्ठा वडे वा महान दुर्धर तपश्चरणथी जिनशासननुं माहात्म्य
प्रगट करे तेने प्रभावनागुण निर्मळ थाय छे.
भावार्थःआ प्रभावनागुण महान गुण छे. तेनाथी अनेक
जीवोने धर्मनी अभिरुचिश्रद्धा उत्पन्न थाय छे. सम्यग्द्रष्टि पुरुषोने
(प्रभावनागुण) अवश्य होय छे.
हवे ‘निःशंकितादि गुणो केवा पुरुषने होय छे?’ ते कहे छेः
जो ण कुणदि परतत्तिं पुणु पुणु भावेदि सुद्धमप्पाणं
इंदियसुहणिरवेक्खो णिस्संकाई गुणा तस्स ।।४२४।।
यः न करोति परतप्तिं पुनः पुनः भावयति शुद्धं आत्मानम्
इन्द्रियसुखनिरपेक्षः निःशंकादयः गुणाः तस्य ।।४२४।।
अर्थःजे पुरुष परनी निंदा न करे, शुद्ध आत्माने वारंवार
चिंतवतो होय, तथा इन्द्रियसुखनी अपेक्षावांच्छारहित होय तेने
निःशंकितादि आठ गुण अने अहिंसाधर्मरूप सम्यक्त्व होय छे.
भावार्थःअहीं त्रण विशेषण छे. तेमनुं तात्पर्य ए छे के जे
परनी निंदा करे तेने निर्विचिकित्सा, उपगूहन, स्थितिकरण तथा
वात्सल्यगुण क्यांथी होय? माटे परनो निंदक न होय त्यारे आ चार
गुण होय छे. वळी जेने पोताना आत्माना वस्तुस्वरूपमां शंका
संदेह
होय तथा मूढद्रष्टि होय ते पोताना आत्माने वारंवार शुद्ध कयांथी
चिंतवे? तेथी जे पोताने शुद्ध भावे (चंतवे) तेने ज निःशंकित अने
अमूढद्रष्टिगुण होय छे तथा प्रभावना पण तेने ज होय छे. वळी जेने
इन्द्रियसुखनी वांच्छा होय तेने निःकांक्षितगुण होतो नथी, पण
इन्द्रियसुखनी वांच्छारहित थतां ज निःकांक्षितगुण होय छे. ए प्रमाणे
आठ गुणो होवानां आ त्रण विशेषणो छे.
हवे कहे छे के जेम आ आठ गुण धर्ममां कह्या तेम देव-गुरु
आदिमां पण समजवाः
२४४ ]
[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा