मंगलाचरण ][ ३
वळी त्रणभुवनना तिलक तो इन्द्र पण छे, एटले तेनाथी
(जिनदेवने) भिन्न दर्शाववा माटे ‘त्रिभुवनेंद्रपरिपूज्यं’ एवुं विशेषण अहीं
आप्युं; तेनाथी त्रण भुवनना इन्द्रो वडे पण पूजनीक एवा देव छे तेमने
अहीं नमस्कार कर्या छे.
अहीं आ प्रमाणे समजवुं के — एवुं देवपणुं तो श्री अरहंत, सिद्ध,
आचार्य, उपाध्याय, अने साधु – ए पांच परमेष्ठीमां ज संभवे छे, कारण
के — परम स्वात्मजनित आनंद सहित क्रीडा, कर्मने जीतवारूप विजिगीषा,
स्वात्मजनित प्रकाशरूप द्युति, स्वस्वरूपनी स्तुति, स्वस्वरूपमां परम प्रमोद,
लोकालोकव्याप्तरूप गति अने शुद्ध स्वरूपमां प्रवृत्तिरूप कांति इत्यादि
देवपणानी एकदेश वा सर्वदेशरूप समस्त उत्कृष्ट क्रिया तेमनामां ज होय
छे तेथी सर्वोत्कृष्ट देवपणुं एमां ज आव्युं, एटले एमने ज मंगलरूप
नमस्कार करवा योग्य छे.
‘मं’ एटले पाप, तेने ‘गल’ एटले गाळे, तथा ‘मंग’ एटले सुख
तेने ‘ल’ एटले लाति – ददाति अर्थात् आपे तेने ‘मंगल’ कहीए छीए.
एवा देवने नमस्कार करवाथी शुभ परिणाम थाय छे अने तेनाथी पापनो
नाश थाय छे – शांतभावरूप सुख प्राप्त थाय छे.
वळी अनुप्रेक्षानो सामान्य अर्थ तो वारंवार चिंतवन करवुं ए छे;
पण चिंतवन तो अनेक प्रकारनां छे अने तेने करवावाळा पण अनेक छे.
तेमनाथी भिन्न दर्शाववा माटे अहीं ‘भव्यजनानंदजननीः’ एवुं विशेषण
आप्युं छे. तेथी जे भव्यजीवोने मोक्षप्राप्ति निकट आवी होय तेमने आनंद
उपजाववावाळी एवी अनुप्रेक्षा कहीश.
बीजुं अहीं ‘अनुप्रेक्षाः’
एवुं बहुवचनरूप पद छे, त्यां अनुप्रेक्षा –
सामान्य चिंतवन एक प्रकाररूप छे तोपण (विशेषपणे तेना) अनेक प्रकार
छे. भव्यजीवोने जे सांभळतां ज मोक्षमार्गमां उत्साह ऊपजे एवा
चिंतवनना संक्षेपताथी बार प्रकार छे. तेनां नाम तथा भावनानी प्रेरणा
बे गाथासूत्रोमां कहे छेः —