Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 432-434.

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अर्थःसम्यक्त्व सहित उत्तमधर्मयुक्त जीव भले तिर्यंच हो
तोपण उत्तम देवपदने प्राप्त थाय छे तथा सम्यक्त्व सहित उत्तम
धर्मथी चंडाल पण देवोनो इन्द्र थाय छे.
अग्गी वि य होदि हिमं होदि भुयंगो वि उत्तमं रयणं
जीवस्स सुधम्मादो देवा वि य किंकरा होंति ।।४३२।।
अग्निः अपि च भवति हिमं भवति भुजङ्गः अपि उत्तमं रत्नम्
जीवस्य सुधर्मात् देवाः अपि च किंकराः भवन्ति ।।४३२।।
अर्थःआ जीवने उत्तम धर्मना प्रसादथी अग्नि पण बरफ
थई जाय छे, सर्प छे ते उत्तम रत्नमाळा थई जाय छे तथा देव छे
ते किंकर
दास बनी जाय छे.
तिक्खं खग्गं माला दुज्जयरिउणो सुहंकरा सुयणा
हालाहलं पि अमियं महापया संपया होदि ।।४३३।।
तीक्ष्णः खङ्गः माला दुर्जयरिपवः सुखंकराः सुजनाः
हालाहलं अपि अमृतं महापदा सम्पदा भवति ।।४३३।।
अर्थःउत्तम धर्म सहित जीवने तीक्ष्ण खड्ग पण फूलनी
माळा बनी जाय छे, जीत्यो न जाय एवो दुर्जय वेरी पण सुख
करवावाळो स्वजन अर्थात् मित्र बनी जाय छे, तथा हळाहळ झेर छे
ते पण अमृतरूप परिणमी जाय छे; घणुं शुं कहीए महान आपदा
पण संपदा बनी जाय छे.
अलियवयणं पि सच्चं उज्जमरहिए वि लच्छिसंपत्ती
धम्मपहावेण णरो अणओ वि सुहंकरो होदि ।।४३४।।
अलीक वचनं अपि सत्यं उद्यमरहिते अपि लक्ष्मीसंप्राप्तिः
धर्मप्रभावेण नरः अनयः अपि सुखंकरः भवति ।।४३४।।
अर्थःधर्मना प्रभावथी जीवनां जूठ वचन पण सत्य थई
जाय छे, उद्यम रहितने पण लक्ष्मीनी प्राप्ति थाय छे तथा अन्यायकार्य
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा