पण सुख करवावाळां थाय छे.
भावार्थः — अहीं आ अर्थ समजवो के जो पूर्वे धर्म सेव्यो होय
तो तेना प्रभावथी अहीं जूठ बोले ते पण साच बनी जाय छे, उद्यम
विना पण संपत्ति मळी जाय छे, अन्यायरूप वर्ते तोपण ते सुखी रहे
छे, अथवा कोई जूठ वचननो तुक्को लगावे तोपण अंतमां ते साचो
थई जाय छे तथा ‘अन्याय कर्यो’ एम लोको कहे छे, तो त्यां
न्यायवाळानी सहाय ज थाय छे एम पण समजवुं.
हवे धर्म रहित जीवनी निंदा कहे छेः —
देवो वि धम्मचत्तो मिच्छत्तवसेण तरुवरो होदि ।
चक्की वि धम्मरहिओ णिवडइ णरए ण संदेहो ।।४३५।।
देवः अपि धर्मत्यक्तः मिथ्यात्ववशेन तरुवरः भवति ।
चक्री अपि धर्मरहितः निपतति नरके न सन्देहः ।।४३५।।
अर्थः — धर्म रहित जीव छे ते मिथ्यात्ववश देव पण
वनस्पतिकाय एकेन्द्रिय बनी जाय छे, तथा धर्म रहित चक्रवर्ती पण
नरकमां पडे छे; तेमां कोई संदेह नथी.
धम्मविहीणो जीवो कुणइ असक्कं पि साहसं जइ वि ।
तो ण वि पावदि इट्ठं सुठ्ठु अणिठ्ठं परं लहदि ।।४३६।।
धर्मविहीनः जीवः करोति अशक्यं अपि साहसं यद्यपि ।
तत् न अपि प्राप्नोति इष्टं सुष्ठु अनिष्ठं परं लभते ।।४३६।।
अर्थः — धर्मरहित जीव जोके मोटुं, बीजाथी न थई शके तेवुं,
साहसिक पराक्रम करे तोपण तेने इष्ट वस्तुनी प्राप्ति थती नथी, पण
उलटो मात्र अतिशय अनिष्टने प्राप्त थाय छे.
भावार्थः — पापना उदयथी भलुं करतां पण बूरुं थाय छे ए
जगप्रसिद्ध छे.
धर्मानुप्रेक्षा ]
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