Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 445.

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यः पुनः कीर्तिनिमित्तं मायया मिष्टभिक्षालाभार्थम्
अल्पं भुंक्ते भोज्यं तस्य तपः निष्फलं द्वितीयम् ।।४४४।।
अर्थःजे मुनि कीर्तिने माटे वा मायाकपट करी वा मिष्ट
भोजनना लाभ अर्थे अल्प भोजन करी तेने तपनुं नाम आपे छे तेनुं
आ बीजुं अवमोदर्यतप निष्फळ छे.
भावार्थःजे एम विचारे छे के अल्प भोजन करवाथी मारी
प्रसंशा थशे, तथा कपटथी लोकने भूलावामां नाखी पोतानुं कोई प्रयोजन
साधवा माटे वा थोडुं भोजन करवाथी मिष्टरस सहित भोजन मळशे
एवा अभिप्रायथी ऊणोदरतप जे करे छे ते तप निष्फळ छे. ए तप
नथी पण पाखंड छे.
हवे वृत्तिपरिसंख्यानतप कहे छेः
एगादिगिहपमाणं किच्चा संकप्पकप्पियं विरसं
भोज्जं पसु व्व भुंजदि वित्तिपमाणं तवो तस्स ।।४४५।।
एकादिगृहप्रमाणं कृत्वा संकल्पकल्पितं विरसम्
भोज्यं पशुवत् भुंक्ते वृत्तिप्रमाणं तपः तस्य ।।४४५।।
अर्थःमुनि आहार लेवा नीकळे त्यारे प्रथमथी ज मनमां
आवी मर्यादा करी नीकळे केआज एक घरे वा बे घरे वा त्रण घरे
ज आहार मळी जाय तो लेवो, नहि तो पाछा फरवुं. वळी एक रसनी,
आपवावाळानी तथा पात्रनी मर्यादा करे के आवो दातार, आवी
पद्धतिथी, आवा पात्रमां धारण करी आहार आपे तो ज लेवो, सरस
नीरस वा फलाणो आहार मळे तो ज लेवो एम आहारनी पण
मर्यादा करे, इत्यादिक वृत्तिनी संख्यागणनामर्यादा मनमां विचारी ए
ज प्रमाणे (आहार) मळे तो ज ले, बीजा प्रकारे न ले. वळी, आहार
ले तो गाय वगेरे पशुनी माफक आहार करे अर्थात् जेम गाय आम
तेम जोया सिवाय मात्र चारो चरवा तरफ ज द्रष्टि राखे छे, तेम (मुनि
आहार) ले तेने वृत्तिपरिसंख्यानतप कहे छे.
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा