Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 473-474.

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भावार्थःपंचपरमेष्ठी, दशलक्षणस्वरूपधर्म तथा आत्म-
स्वरूपमां व्यक्त (प्रगट) राग सहित उपयोग एकाग्र थाय छे, त्यारे
ते मंदकषाय सहित छे एम कह्युं छे अने ए ज धर्मध्यान छे. तथा
शुक्लध्यान छे त्यां उपयोगमां व्यक्त राग तो नथी अर्थात् पोताना
अनुभवमां पण न आवे एवा सूक्ष्म राग सहित (मुनि) श्रेणी चढे
छे त्यां आत्मपरिणाम उज्ज्वल होय छे तेथी पवित्र गुणना योगथी
तेने शुक्ल कह्युं छे. मंदतम कषायथी अर्थात् अतिशय मंद कषायथी ते
होय छे तथा कषायनो अभाव थतां पण कह्युं छे.
हवे आर्त्तध्यान कहे छेः
दुक्खयरविसयजोए केम इमं चयदि इदि विचिंतंतो
चेट्ठदि जो विक्खित्तो अट्टज्झाणं हवे तस्स ।।४७३।।
मणहरविसयविओगे कह तं पावेमि इदि वियप्पो जो
संतावेण पयट्टो सो च्चिय अट्टं हवे झाणं ।।४७४।।
दुःखकरविषययोगे कथं इमं त्यजति इति विचिन्तयन्
चेष्टते यः विक्षिप्तः आर्त्तध्यानं भवेत् तस्य ।।४७३।।
मनोहरविषयवियोगे कथं तत् प्राप्नोमि इति विकल्पः यः
सन्तापेन प्रवृत्तः तत् एव आर्त्तं भवेत् ध्यानम् ।।४७४।।
अर्थदुःखकारी विषयनो संयोग थतां जे पुरुष आवुं चिंतवन
करे के ‘आ माराथी केवी रीते दूर थाय?’ वळी तेना संयोगथी
विक्षिप्तचित्तवाळो थयो थको चेष्टा करे तथा रुदनादिक करे तेने
आर्त्तध्यान होय छे. वळी जे मनोहर
वहाली विषयसामग्रीनो वियोग
थतां आ प्रमाणे चिंतवन करे के‘तेने हवे हुं शी रीते पामुं?’ एम
तेना वियोगथी संतापरूपदुःखरूप प्रवर्ते ते पण आर्तध्यान छे.
भावार्थःसामान्यपणे दुःखकलेशरूप परिणाम छे ते
आर्त्तध्यान छे. ते दुःखमां एवो लीन रहे के बीजी कोई चेतनता
(जाग्रति) ज रहे नहि. ए आर्त्तध्यान बे प्रकारथी कह्युं छेः प्रथम तो
द्वादश तप ][ २७१