Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 6-7.

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६ ]

[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
जन्म मरणेन समं सम्पद्यते यौवनं जरासहितम्
लक्ष्मीः विनाशसहिता इति सर्वं भंगुरं जानीहि ।।।।

अर्थःहे भव्य! आ जन्म छे ते तो मरण सहित छे, यौवन छे ते वृद्धावस्था सहित ऊपजे छे अने लक्ष्मी छे ते विनाश सहित ऊपजे छे; ए प्रमाणे सर्व वस्तुने क्षणभंगुर ज जाण!

भावार्थःजेटली अवस्थाओ जगतमां छे तेटली बधीय प्रतिपक्षभाव सहित छे छतां आ जीव, जन्म थाय त्यारे तेने स्थिर जाणी हर्ष करे छे अने मरण थाय त्यारे तेने गयो मानी शोक करे छे. ए प्रमाणे इष्टनी प्राप्तिमां हर्ष, अप्राप्तिमां विषाद तथा अनिष्टनी प्राप्तिमां विषाद अने अप्राप्तिमां हर्ष करे छे; ए सर्व मोहनुं माहात्म्य छे पण ज्ञानीए तो समभावरूप रहेवुं.

अथिरं परियणसयणं पुत्तकलत्तं सुमित्तलावण्णं
गिहगोहणाइ सव्वं णवघणविंदेण सारिच्छं ।।।।
अस्थिर परिजनस्वजनं पुत्रकलत्रं सुमित्रलावण्यम्
गृहगोधनादि सर्वं नवघनवृन्देन सदृशम् ।।।।

अर्थःजेम नवीन मेघनां वादळ तत्काळ उदय पामीने विलय पामी जाय छे तेवी ज रीते आ संसारमां परिवार, बंधुवर्ग, पुत्र, स्त्री, भला मित्रो, शरीरनी सुंदरता, घर अने गोधन आदि समस्त वस्तुओ अस्थिर छे.

भावार्थःए सर्व वस्तुने अस्थिर जाणी तेमां हर्ष-विषाद न करवो.

सुरधणुतडिव्व चवला इंदियविसया सुभिच्चवग्गा य
दिट्ठपणट्ठा सव्वे तुरयगया रहवरादी य ।।।।
सुरधनुस्तडिद्वच्चपला इन्द्रियविषयाः सुभृत्यवर्गाश्च
दृष्टप्रणष्टाः सर्वे तुरगगजाः रथवरादयश्च ।।।।