अध्रुवानुप्रेक्षा ]
अर्थः — आ जगतमां इन्द्रियोना विषयो छे ते इन्द्रधनुष अने विजळीना चमकार जेवा चंचळ छे; प्रथम देखाय पछी तुरत ज विलय पामी जाय छे. वळी तेवी ज रीते भला चाकरोनो समूह अने सारा घोडा-हाथी-रथ छे ते सर्व वस्तु पण ए ज प्रमाणे छे.
भावार्थः — आ जीव, सारा सारा इन्द्रियविषयो अने उत्तम नोकर, घोडा, हाथी अने रथादिकनी प्राप्तिथी सुख माने छे परंतु ए सर्व क्षणभंगुर छे. माटे अविनाशी सुखनो उपाय करवो ज योग्य छे.
हवे बंधुजनोनो संयोग केवो छे ते द्रष्टांतपूर्वक कहे छेः —
अर्थः — जेम पंथमां पथिकजनोनो संयोग क्षणमात्र छे, ते ज प्रमाणे संसारमां बंधुजनोनो संयोग पण अस्थिर छे.
भावार्थः — आ जीव, बहोळो कुटुंब-परिवार पामतां अभिमानथी तेमां सुख माने छे अने ए मद वडे पोताना स्वरूपने भूले छे, पण ए बंधुवर्गादिनो संयोग मार्गना पथिकजन जेवो ज छे, थोडा ज समयमां विखराई जाय छे. माटे एमां ज संतुष्ट थईने स्वरूपने न भूलवुं.
हवे आगळ देहना संयोगनी अस्थिरता दर्शावे छेः —