Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 8-9.

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अध्रुवानुप्रेक्षा ]
[ ७
अर्थःआ जगतमां इन्द्रियोना विषयो छे ते इन्द्रधनुष अने
विजळीना चमकार जेवा चंचळ छे; प्रथम देखाय पछी तुरत ज विलय
पामी जाय छे. वळी तेवी ज रीते भला चाकरोनो समूह अने सारा
घोडा-हाथी-रथ छे ते सर्व वस्तु पण ए ज प्रमाणे छे.
भावार्थःआ जीव, सारा सारा इन्द्रियविषयो अने उत्तम
नोकर, घोडा, हाथी अने रथादिकनी प्राप्तिथी सुख माने छे परंतु ए
सर्व क्षणभंगुर छे. माटे अविनाशी सुखनो उपाय करवो ज योग्य छे.
हवे बंधुजनोनो संयोग केवो छे ते द्रष्टांतपूर्वक कहे छेः
पंथे पहियजणाणं जह संजोओ हवेइ खणमित्तं
बंधुजणाणं च तहा संजोओ अद्ध्रुओ होइ ।।।।
पथि पथिकजनानां यथा संयोगो भवति क्षणमात्रम्
बन्धुजनानां च तथा संयोगः अध्रुवः भवति ।।।।
अर्थःजेम पंथमां पथिकजनोनो संयोग क्षणमात्र छे, ते ज
प्रमाणे संसारमां बंधुजनोनो संयोग पण अस्थिर छे.
भावार्थःआ जीव, बहोळो कुटुंब-परिवार पामतां
अभिमानथी तेमां सुख माने छे अने ए मद वडे पोताना स्वरूपने
भूले छे, पण ए बंधुवर्गादिनो संयोग मार्गना पथिकजन जेवो ज छे,
थोडा ज समयमां विखराई जाय छे. माटे एमां ज संतुष्ट थईने
स्वरूपने न भूलवुं.
हवे आगळ देहना संयोगनी अस्थिरता दर्शावे छेः
अइलालिओ वि देहो ण्हाणसुयंधेहिं विविहभक्खेहिं
खणमित्तेण वि विहडइ जलभरिओ आमघडओ व्व ।।।।
अतिलालितः अपि देहः स्नानसुगन्धैः विविधभक्ष्यैः
क्षणमात्रेण अपि विघटते जलभृतः आमघटः इव ।।।।