अध्रुवानुप्रेक्षा ]
भावार्थः — कोई जाणे के – हुं मोटा कुळनो छुं, मारे पेढी दर पेढीथी आ संपदा चाली आवे छे तो ते कयां जवानी छे? हुं धीरजवान छुं एटले केवी रीते गुमावीश? हुं पंडित छुं – विद्यावान छुं, तो तेने कोण लई शकवानुं छे? ऊलटा मने तेओ आपशे ज; हुं सुभट छुं तेथी केवी रीते कोईने लेवा दईश? हुं पूजनिक छुं तेथी मारी पासेथी कोण लई शके? हुं धर्मात्मा छुं अने धर्मथी तो ते आवे छे, छतां जाय केवी रीते? हुं महा रूपवान छुं, मारुं रूप देखतां ज जगत प्रसन्न थाय छे, तो आ संपदा क्यां जवानी छे? हुं सज्जन अने परोपकारी छुं एटले ते क्यां जशे? तथा हुं महा पराक्रमी छुं, संपदाने वधारीश ज, छतीने वे क्यां जवा दईश?
कारण के आ संपदा जोत-जोतामां विलय पामी जाय छे, कोईनी राखी ते रहेती नथी.
हवे कहे छे के – लक्ष्मी प्राप्त थई तेने शुं करीए? तेनो उत्तरः —
अर्थः — आ लक्ष्मी जलतरंगनी माफक चंचळ छे एटले ज्यां सुधी ते बे – त्रण दिवस सुधी चेष्टा करे छे – मोजूद छे त्यां सुधी तेने भोगवो वा दयाप्रधानी थईने दानमां आपो.
भावार्थः — कोई कृपणबुद्धि आ लक्ष्मीने मात्र संचय करी स्थिर राखवा इच्छे छे तेने उपदेश छे के – आ लक्ष्मी चंचळ छे, स्थिर रहेवानी नथी, माटे ज्यां सुधी थोडा दिवस ए विद्यमान (मोजूद) छे त्यां सुधी तेने प्रभुभक्ति अर्थे वा परोपकार अर्थे दानादिमां खरचो तथा भोगवो.