Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 20-21.

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अध्रुवानुप्रेक्षा ]
[ १३
अर्थःजे पुरुष पुण्योदयथी वधती जती जे लक्ष्मी, तेने
निरंतर धर्मकार्योमां आपे छे ते पुरुष पंडितजनो वडे स्तुति करवा योग्य
छे अने तेनी ज लक्ष्मी सफळ छे.
भावार्थःलक्ष्मीने पूजा, प्रतिष्ठा, यात्रा, पात्रदान अने
परोपकार इत्यादि धर्मकार्योमां खरचवाथी ज ते सफळ छे अने
पंडितजनो पण ते दातानी प्रशंसा करे छे.
एवं जो जाणित्ता विहलियलोयाण धम्मजुत्ताणं
णिरवेक्खो तं देदि हु तस्स हवे जीवियं सहलं ।।२०।।
एवं यः ज्ञात्वा विफलितलोकेभ्यः धर्मयुक्तेभ्यः
निरपेक्षः तां ददाति खलु तस्य भवेत् जीवितं सफलम् ।।२०।।
अर्थः जे पुरुष उपर कह्या प्रमाणे जाणीने धर्मयुक्त जे
निर्धनजन छे तेमने, प्रत्युपकारनी वांछारहित थईने, ते लक्ष्मीने आपे
छे तेनुं जीवन सफळ छे.
भावार्थःपोतानुं प्रयोजन साधवा अर्थे तो दान आपवावाळा
जगतमां घणा छे, परंतु जे प्रत्युपकारनी वांछारहितपणे धर्मात्मा तथा
दुःखी-दरिद्र पुरुषोने धन आपे छे तेवा विरला छे अने तेमनुं ज
जीवित सफळ छे.
हवे आगळ मोहनुं माहात्म्य दर्शावे छेः
जलबुब्बुयसारिच्छं धणजोव्वणजीवियं पि पेच्छंता
मण्णंति तो वि णिच्चं अइबलिओ मोहमाहप्पो ।।२१।।
जलबुद्बुदसदृशं धनयौवनजीवितं अपि पश्यन्तः
मन्यन्ते तथापि नित्यं अतिबलिष्ठं मोहमाहात्म्यम् ।।२१।।
अर्थःआ प्राणी धन-यौवन-जीवनने जलना बुदबुदनी
(परपोटा) माफक तुरत विलय पामी जतां जोवा छतां पण तेने नित्य माने
छे ए ज मोटुं आश्चर्य छे
ए ज मोहनुं महा बळवान माहात्म्य छे.