१८ ]
अर्थः — देवोनो इन्द्र पण पोताने चवतो (मरतो) थको राखवाने समर्थ होत तो सर्वोत्तम भोगो सहित जे स्वर्गनो वास तेने ते शा माटे छोडत?
भावार्थः — सर्व भोगोनुं स्थळ पोताना वश चालतुं होय तो तेने कोण छोडे?
हवे परमार्थ (साचुं) शरण दर्शावे छेः —
अर्थः — हे भव्य! तुं परम श्रद्धापूर्वक दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप (आत्माना) शरणने सेवन कर. आ संसारमां परिभ्रमण करता जीवोने अन्य कोई पण शरण नथी.
भावार्थः — सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र पोतानुं स्वरूप छे अने ए ज परमार्थरूप (वास्तविक – साचुं) शरण छे, अन्य सर्व अशरण छे. निश्चय श्रद्धापूर्वक ए ज शरणने पकडो – एम अहीं उपदेश छे.
हवे ए ज वातने द्रढ करे छेः —
अर्थः — उत्तम क्षमादि स्वभावे परिणत आत्मा ज खरेखर शरण छे; पण जे तीव्रकषाययुक्त थाय छे ते पोता वडे पोताने ज हणे छे.