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देहोमां जे संसरण अर्थात् भ्रमण थाय छे तेने ‘संसार’ कहीए छीए. ते केवी रीते? ए ज कहीए छीएः – एक शरीरने छोडी अन्यने ग्रहण करे; वळी पाछो नवुं शरीर ग्रहण करी, पाछो तेने पण छोडी, अन्यने ग्रहण करे; ए प्रमाणे घणी वार ( शरीरने) ग्रहण कर्या ज करे ते ज संसार छे.
भावार्थः — एक शरीरथी अन्य शरीरनी प्राप्ति थया करे ते ज संसार छे.
हवे ए प्रमाणे संसारमां संक्षेपथी चार गति छे तथा अनेक प्रकारनां दुःख छे. त्यां प्रथम ज नरकगतिनां दुःखोने छ गाथाओ द्वारा कहे छेः —
अर्थः — पापना उदयथी आ जीव नरकमां उत्पन्न थाय छे; त्यां पांच प्रकारनां विविध घणां दुःख सहन करे छे, जेमने तिर्यंचादि अन्य गतिओनां दुःखोनी उपमा आपी शकाती नथी.
भावार्थः — जे जीवोनी हिंसा करे छे, जूठ बोले छे, परधन हरण करे छे, परनारीने वांच्छे छे, घणा आरंभ करे छे, परिग्रहमां आसक्त छे, घणो क्रोधी, तीव्र मानी, अति कपटी, अति कठोरभाषी, पापी, चुगलीखोर, (अति) कृपण, देव-शास्त्र-गुरु निंदक, अधम, दुर्बुद्धि, कृतघ्नी अने घणो ज शोक-दुःख करवानी ज जेनी प्रकृति छे एवो जीव मरीने नरकमां उत्पन्न थाय छे अने त्यां अनेक प्रकारनां दुःखने सहे छे.
हवे उपर कहेलां पांच प्रकारनां दुःख क्यां क्यां छे ते कहे छेः —