Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 34.

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२० ]

[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा

देहोमां जे संसरण अर्थात् भ्रमण थाय छे तेने ‘संसार’ कहीए छीए. ते केवी रीते? ए ज कहीए छीएःएक शरीरने छोडी अन्यने ग्रहण करे; वळी पाछो नवुं शरीर ग्रहण करी, पाछो तेने पण छोडी, अन्यने ग्रहण करे; ए प्रमाणे घणी वार ( शरीरने) ग्रहण कर्या ज करे ते ज संसार छे.

भावार्थःएक शरीरथी अन्य शरीरनी प्राप्ति थया करे ते ज संसार छे.

हवे ए प्रमाणे संसारमां संक्षेपथी चार गति छे तथा अनेक प्रकारनां दुःख छे. त्यां प्रथम ज नरकगतिनां दुःखोने छ गाथाओ द्वारा कहे छेः

नरकगतिनां दुःखो
पाव-उदयेण णरए जायदि जीवो सदेहि बहुदुक्खं
पंचपयारं विविहं अणोवमं अण्णदुक्खेहिं ।।३४।।
पापोदयेन नरके जायते जीवः सहते बहुदुःखम्
पंचप्रकारं विविधं अनौपम्यं अन्यदुःखैः ।।३४।।

अर्थःपापना उदयथी आ जीव नरकमां उत्पन्न थाय छे; त्यां पांच प्रकारनां विविध घणां दुःख सहन करे छे, जेमने तिर्यंचादि अन्य गतिओनां दुःखोनी उपमा आपी शकाती नथी.

भावार्थःजे जीवोनी हिंसा करे छे, जूठ बोले छे, परधन हरण करे छे, परनारीने वांच्छे छे, घणा आरंभ करे छे, परिग्रहमां आसक्त छे, घणो क्रोधी, तीव्र मानी, अति कपटी, अति कठोरभाषी, पापी, चुगलीखोर, (अति) कृपण, देव-शास्त्र-गुरु निंदक, अधम, दुर्बुद्धि, कृतघ्नी अने घणो ज शोक-दुःख करवानी ज जेनी प्रकृति छे एवो जीव मरीने नरकमां उत्पन्न थाय छे अने त्यां अनेक प्रकारनां दुःखने सहे छे.

हवे उपर कहेलां पांच प्रकारनां दुःख क्यां क्यां छे ते कहे छेः