Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 51-53.

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संसारानुप्रेक्षा ]

[ २७
सकलार्थविषययोगः बहुपुण्यस्य अपि न सर्वथा भवति
तत् पुण्यं अपि न कस्य अपि सर्वं येन ईप्सितं लभते ।।५०।।

अर्थःआ संसारमां समस्त पदार्थोनो, जे विषय अर्थात् भोग्य वस्तु छे ते सर्वनो, योग मोटा पुण्यवानने पण सर्वांगपणे मळतो नथी. कोईने एवुं पुण्य ज नथी के जे वडे बधाय मनोवांच्छित (पदार्थो) मळे.

भावार्थःमोटा पुण्यवानने पण वांच्छित वस्तुमां कांई ने कांई ओछप रहे छे, सर्व मनोरथ तो कोईना पण पूर्ण थता नथी; तो पछी (कोई जीव) संसारमां सर्वांग सुखी केवी रीते थाय?

कस्स वि णत्थि कलत्तं अहव कलत्तं पुत्तसंपत्ती
अह तेसिं संपत्ती तह वि सरोओ हवे देहो ।।५१।।
कस्य अपि नास्ति कलत्रं अथवा कलत्रं न पुत्रसम्प्राप्तिः
अथ तेषां सम्प्राप्तिः तथापि सरोगः भवेत् देहः ।।५१।।

अर्थःकोई मनुष्यने तो स्त्री नथी, कोईने जो स्त्री होय तो पुत्रनी प्राप्ति नथी तथा कोईने पुत्रनी प्राप्ति छे तो शरीर रोगयुक्त छे.

अह णीरोओ देहो तो धणधण्णाण णेय संपत्ति
अह धणधण्णं होदि हु तो मरणं झत्ति ढुक्केदि ।।५२।।
अथ नीरोगः देहः तत् धनधान्यानां नैव सम्प्राप्तिः
अथ धनधान्यं भवति खलु तत् मरणं झगिति ढौकते ।।५२।।

अर्थःजो कोई नीरोग देह होय तो धन-धान्यनी प्राप्ति होती नथी अने जो धन-धान्यनी प्राप्ति थई जाय छे तो (कदाचित्) मरण पण थई जाय छे.

कस्स वि दुठ्ठकलत्तं कस्स वि दुव्वसणवसणिओ पुत्तो
कस्स वि अरिसमबंधू कस्स वि दुहिदा दु दुच्चरिया ।।५३।।