संसारानुप्रेक्षा ]
अर्थः — आ संसारमां समस्त पदार्थोनो, जे विषय अर्थात् भोग्य वस्तु छे ते सर्वनो, योग मोटा पुण्यवानने पण सर्वांगपणे मळतो नथी. कोईने एवुं पुण्य ज नथी के जे वडे बधाय मनोवांच्छित (पदार्थो) मळे.
भावार्थः — मोटा पुण्यवानने पण वांच्छित वस्तुमां कांई ने कांई ओछप रहे छे, सर्व मनोरथ तो कोईना पण पूर्ण थता नथी; तो पछी (कोई जीव) संसारमां सर्वांग सुखी केवी रीते थाय?
अर्थः — कोई मनुष्यने तो स्त्री नथी, कोईने जो स्त्री होय तो पुत्रनी प्राप्ति नथी तथा कोईने पुत्रनी प्राप्ति छे तो शरीर रोगयुक्त छे.
अर्थः — जो कोई नीरोग देह होय तो धन-धान्यनी प्राप्ति होती नथी अने जो धन-धान्यनी प्राप्ति थई जाय छे तो (कदाचित्) मरण पण थई जाय छे.