संसारानुप्रेक्षा ]
जाय छे. अने किंकर होय ते राजा थई जाय छे.
अर्थः — कर्मोदयवशे वैरी होय ते तो मित्र थई जाय छे तथा मित्र होय ते वैरी थई जाय छे. एवो ज संसारनो स्वभाव छे.
भावार्थः — पुण्यकर्मना उदयथी वैरी पण मित्र थई जाय छे तथा पापकर्मना उदयथी मित्र पण शत्रु थई जाय छे.
हवे चार गाथामां देवगतिनां दुःखोनुं स्वरूप कहे छेः —
अर्थः — अथवा (कदाचित्) महान कष्टथी देवपर्याय पण पामे त्यां तेने पण महान ॠद्धिधारक देवोनी ॠद्धिसंपदा जोईने मानसिक दुःख उत्पन्न थाय छे.
अर्थः — महर्द्धिकदेवोने पण इष्ट ॠद्धि अने देवांगनादिनो वियोग थतां दुःख थाय छे. जेमने विषयाधीन सुख छे तेमने तृप्ति क्यांथी थाय? तृष्णा वधती ज रहे छे.