Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 60-62.

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३० ]

[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
हवे शारीरिक दुःखथी मानसिक दुःख मोटुं छेएम कहे छेः
सारीरियदुक्खादो माणसदुक्खं हवेइ अइपउरं
माणसदुक्खजुदस्स हि विसया वि दुहावहा हुंति ।।६०।।
शारीरिकदुःखतः मानसदुःखं भवति अतिप्रचुरम्
मानसदुःखयुतस्य हि विषयाः अपि दुःखावहाः भवन्ति ।।६०।।

अर्थःकोई समजे के शरीरसंबंधी दुःख मोटुं छे अने मानसिक दुःख अल्प छे. तेने अहीं कहे छे के शारीरिक दुःखथी मानसिक दुःख घणुं तीव्र छेमोटुं छे; जुओ, मानसिक दुःख सहित पुरुषने अन्य घणा विषयो होय तोपण तेओ दुःखदायक भासे छे.

भावार्थःमनमां चिंता थाय त्यारे सर्व सामग्री दुःखरूप ज भासे छे.

देवाणं पि य सुक्खं मणहरविसएहिं कीरदे जदि ही
विसयवसं जं सुक्खं दुक्खस्स वि कारणं तं पि ।।६१।।
देवानां अपि च सुखं मनोहरविषयैः क्रियते यदि हि
विषयवशं यत्सुखं दुखस्य अपि कारणं तत् अपि ।।६१।।

अर्थःदेवोने मनोहर विषयोथी जो सुख छे एम विचारवामां आवे तो ते प्रगटपणे सुख नथी. जे विषयोने आधीन सुख छे ते दुःखनुं ज कारण छे (दुःख ज छे).

भावार्थःअन्य निमित्तथी सुख मानवामां आवे ते भ्रम छे, कारण के जे वस्तु सुखना कारणरूप मानवामां आवे छे ते ज वस्तु काळान्तरमां दुःखना ज कारणरूप थाय छे.

ए प्रमाणे विचार करतां संसारमां कोई ठेकाणे पण सुख नथी एम कहे छेः

एवं सुट्ठु असारे संसारे दुक्खसायरे घोरे
किं कत्थ वि अत्थि सुहं वियारमाणं सुणिच्छयदो ।।६२।।