अशुचित्वानुप्रेक्षा ]
अर्थः — रूडा, पवित्र, सुरस अने मनोहर सुगंधित द्रव्यो छे ते पण आ देहमां नाखतांनी साथे ज घृणास्पद अने अत्यंत दुर्गन्धमय बनी जाय छे.
भावार्थः — आ देहने चंदन-कपूरादि लगावतां ते पण दुर्गन्धमय थई जाय छे, मिष्टान्नादि सुरस वस्तुओ खातां ते पण मलादिरूप परिणमी जाय छे तथा अन्य वस्तु पण आ देहना स्पर्शमात्रथी अस्पर्श्य थई जाय छे.
फरी आ देहने अशुचिरूप दर्शावे छेः —
अर्थः — हे भव्य? आ मनुष्योनो देह, कर्मोए अशुचिमय बनाव्यो छे, त्यां आवी उत्प्रेक्षा – संभावना जाण के — ए मनुष्योने वैराग्य उपजाववा माटे ज एवो रच्यो छे; छतां पण आ मनुष्य एवा देहमां पण अनुरागी थाय छे ए मोटुं अज्ञान छे.
वळी ए ज अर्थने द्रढ करे छेः —
अर्थः — पूर्वोक्त प्रकारे एवा अशुचि देहने प्रत्यक्ष देखवा छतां पण आ मनुष्य त्यां अनुराग करे छे, जाणे पूर्वे (आवो देह) कदी