Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 87.

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा

पण पाम्यो न होय एम मानतो थको तेने आदरे छेसेवे छे, पण ते महान अज्ञान छे.

हवे आ देहथी जे विरक्त थाय छे तेने अशुचिभावना सफल छे एम कहे छेः

जो परदेहविरत्तो णियदेहे ण य करेदि अणुरायं
अप्पसरूवि सुरत्तो असुइत्ते भावणा तस्स ।।८७।।
यः परदेहविरक्तः निजदेहे न च करोति अनुरागम्
आत्मस्वरूपे सुरक्तः अशुचित्वे भावना तस्य ।।८७।।

अर्थःजे भव्य, परदेह जे स्त्री आदिना देह तेनाथी विरक्त थतो थको निज देहमां पण अनुराग करतो नथी अने आत्मस्वरूपमां ध्यान वडे लीन रहे छे तेने अशुचिभावना सार्थक थाय छे.

भावार्थःकेवळ विचारमात्रथी ज भावना प्रधान (साची) नथी, परन्तु देहने अशुचिरूप विचारवाथी जेने वैराग्य प्रगट थाय तेने भावना सत्यार्थ कहेवाय छे.

(दोहरो)
स्वपर देहकुं अशुचि लखी, तजै तास अनुराग;
ताके साची भावना, सो कहीए महाभाग्य.
इति अशुचित्वानुप्रेक्षा समाप्त.