आस्रवानुप्रेक्षा ]
अर्थः — मन-वचन-कायरूप योग छे ते ज आस्रव छे. केवा छे ते योग? जीवप्रदेशोनुं परिस्पंदन अर्थात् चलन-कंपन तेना ज जे विशेष (भेद) छे ते ज योग छे. वळी ते केवा छे? मोहकर्मना उदयरूप मिथ्यात्व- कषायकर्म सहित छे तथा ए मोहना उदयथी रहित पण छे.
भावार्थः — मन-वचन-कायनुं निमित्त पामीने जीवना प्रदेशोनुं चलाचल थवुं ते योग छे अने तेने ज आस्रव कहीए छीए. ते गुणस्थानोनी परिपाटी अनुसार सूक्ष्मसांपराय नामना दशमा गुणस्थान सुधी तो मोहना उदयरूप यथासंभवित मिथ्यात्वकषायोथी सहित होय छे तेने सांपरायिक आस्रव कहीए छीए तथा तेनी उपरना तेरमा गुणस्थान सुधी मोहना उदयरहित (योग) छे तेने इर्यापथ आस्रव कहीए छीए. जे पुद्गलवर्गणाओ कर्मरूप परिणमे तेने द्रव्यास्रव कहीए छीए तथा जीवप्रदेशो चंचल थाय छे तेने भावास्रव कहीए छीए.
हवे मोहना उदय सहित जे आस्रव छे ते ज (खरेखर) आस्रव छे एम विशेषपणे कहे छेः —