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अर्थः — मोहकर्मना उदयवशे आ जीवने जे परिणाम थाय छे ते ज आस्रव छे, एम हे भव्य? तुं प्रगटपणे जाण! ते परिणाम मिथ्यात्वादि अनेक प्रकारना छे.
भावार्थः — कर्मबंधनुं कारण आस्रव छे. ते मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय अने योग — एम पांच प्रकारना छे. तेमां स्थिति- अनुभागरूप बंधना कारण तो मिथ्यात्वादि चार ज छे अने ते मोहकर्मना उदयथी थाय छे; तथा योग छे ते तो समयमात्र बंधने करे छे पण कांई स्थिति-अनुभागने करतो नथी, तेथी ते बंधना कारणमां प्रधान (मुख्य) नथी.
हवे पुण्य-पापना भेदथी आस्रवने बे प्रकारनो कहे छेः —
अर्थः — कर्म छे ते पुण्य अने पाप एवा बे प्रकारनां छे. तेनुं कारण पण बे प्रकारनुं छेः एक प्रशस्त अने बीजुं अप्रशस्त. त्यां मंदकषायरूप परिणाम छे ते तो प्रशस्त एटले शुभ छे तथा तीव्रकषायरूप परिणाम छे ते अप्रशस्त एटले अशुभ छे एम प्रगट जाणो.
भावार्थः — शातावेदनीय, शुभआयु, उच्चगोत्र अने शुभनाम ए प्रकृतिओ तो पुण्य (शुभ) रूप छे तथा बाकीनां चार घातिकर्मो, अशातावेदनीय, नरकायु, नीचगोत्र अने अशुभनाम ए बधी प्रकृतिओ पापरूप छे. तेमना कारणरूप आस्रव पण बे प्रकारना छे. त्यां मंदकषायरूप परिणाम छे ते तो पुण्यास्रव छे तथा तीव्रकषायरूप परिणाम छे ते पापास्रव छे.
हवे मंद-तीव्र कषायनां प्रगट द्रष्टांत कहे छेः —