Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
प्रमाणे एक दोरी लांबुपहोळुं खेतर होय तेना चार चार हाथना
लांबापहोळा खंड करीए तो वीसने वीसे गुणतां चारसो थाय, तेने
कचवांसी कहे छे. तेनी वीस विसवांसी थई, तेनो एक वीघो थयो. ए
प्रमाणे चोरस, त्रिकोण वा गोळ आदि खेतर होय तेने समान खंडथी
मापी क्षेत्रफळ लाववामां आवे छे; ए ज प्रमाणे लोकना क्षेत्रने
योजनादिनी संख्या वडे जेवुं क्षेत्र होय तेवा विधानथी क्षेत्रफळ लाववानुं
विधान गणितशास्त्रथी जाणवुं.
अहीं लोकना क्षेत्रमां अने द्रव्योनी गणनामां अलौकिक गणित
एकवीस छे, तथा उपमागणित आठ छे. त्यां संख्यातना त्रण भेद छे
जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट. असंख्यातना नव भेद छेतेमां जघन्य,
मध्यम अने उत्कृष्ट ए त्रण प्रकारे परीतासंख्यात; जघन्य, मध्यम अने
उत्कृष्ट ए त्रण प्रकारे युक्तासंख्यात; तथा जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट
ए त्रण प्रकारे असंख्यातासंख्यात. ए प्रमाणे असंख्यातना नव भेद
थया. वळी अनंतना पण नव भेद छे. ते आ प्रमाणे
जघन्य, मध्यम
अने उत्कृष्ट ए त्रण प्रकारथी परीतानंत; जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट
ए त्रण प्रकारथी युक्तानंत; तथा जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट ए त्रण
प्रकारथी अनंतानंत
ए प्रमाणे अनंतना नव भेद छे. ए प्रमाणे
संख्यातना त्रण, असंख्यातना नव तथा अनंतना नव मळी अलौकिक
गणितना एकवीस भेद थया.
त्यां जघन्यपरीतासंख्यात (नुं माप) लाववा माटे जंबूद्वीप जेवडा
लाख-लाख योजनना व्यासवाळा तथा हजार-हजार योजन ऊंडा चार
कुंड करीए. तेमां एकनुं नाम अनवस्थाकुंड, बीजानुं नाम शलाकाकुंड,
त्रीजानुं नाम प्रतिशलाकाकुंड तथा चोथानुं नाम महाशलाकाकुंड. तेमां
प्रथमना अनवस्थाकुंडने सरसवना दाणाथी पूरेपूरो भरीए तो तेमां
छेंतालीस अंक प्रमाण सरसव समाय. तेने संकल्पमात्र लईने चालीए;
तेमांथी एक द्वीपमां अने एक समुद्रमां ए प्रमाणे नाखता जईए; त्यां
ज्यां ए सरसव पूरा थाय ते द्वीप वा समुद्रना माप प्रमाणे