Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 101 of 153
PDF/HTML Page 109 of 161

 

background image
अध्याय-१२ ][ १०१
(तेने) तुं कर्मरजने उडाडवा माटे पवन समान मोक्षलक्ष्मीनुं कारण
जाण. १२.
यदि चिद्रूपेऽनुभवो मोहाभावे निजे भवेत्तत्वात्
तत्परमज्ञानं स्याद् बहिरंतरसंगमुक्तस्य ।।१३।।
बहिरंतर सौ संग त्यागीने मोहक्षये ज्यां थाये,
निज चिद्रूप अनुभव निश्चे, परम ज्ञान कहेवाये रे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. १३.
अर्थ :बाह्य अने अंतरसंगथी रहित पुरुषने ज्यारे मोहनो
क्षय थाय (छे) त्यारे पोताना चिद्रूपमां अनुभव थाय (छे) अने
निश्चयथी ते परमज्ञान थाय छे. १३.
निर्वृत्तिर्यत्र सावद्यात् प्रवृत्तिः शुभकर्मसु
त्रयोदशप्रकारं तच्चारित्रं व्यवहारतः ।।१४।।
अशुभ कर्मथी ज्यां निवृत्ति शुभमां प्रवृत्ति धाारे;
ते चारित्र कıाãं व्यवहारे, ज्ञानीए तेर प्रकारे रे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. १४.
अर्थ :ज्यां पापथी निवृत्ति अने शुभ कर्मोमां प्रवृत्ति छे. ते
तेर प्रकारनुं व्यवहारथी चारित्र छे. १४.
मूलोत्तरगुणानां यत्पालनं मुक्तये मुनेः
दृशा ज्ञानेन संयुक्तं तच्चारित्रं न चापरं ।।१५।।
सम्यग्दर्शन ज्ञान सहित जे, मूलोत्तर गुण पाले;
ते चारित्र, अवर नहि, मुनिने, मुकितश्री सुख आले रे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. १५.
अर्थ :जे दर्शन अने ज्ञानसहित मूळ अने उत्तर गुणोनुं
पालन छे, ते चारित्र मुनिनी मुक्तिनुं कारण छे पण बीजुं नहि. १५.