Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०६ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
सत्पूज्यानां स्तुतिनतियजनं षट्कर्मावश्यकानां
वृत्तादीनां दृढतरधरणं सत्तपस्तीर्थयात्रा
संगादीनां त्यजनमजननं क्रोधमानादिकाना
माप्तैरुक्तं वरतरकृपया सर्वमेतद्धि शुद्धयै ।।।।
स्तुति प्रणति पूजा संतोनी तप तीरथ यात्रा उल्लास,
षट् आवश्यक नित्य कर्म ने वृत्त आदिमां द्रढ अभ्यास;
त्याग सकल संगादि तणो ने क्रोधाादिक कषाय विराम,
परम कृपा करी आप्तजनोए शुद्धि हेतु ए कıाा तमाम. ४.
अर्थ :सत्ना कारणे पूजवायोग्य सत्पुरुषोनी स्तुति, प्रणाम,
पूजा, आवश्यकोना षट्कने (छ आवश्यकने), वृत्त आदिने द्रढपणे धारण
करवा ते सत् ने अर्थे तप, तीर्थयात्रा, संगप्रसंग आदि परिग्रहनो त्याग,
क्रोध, मानादि कषायोनो अभाव आ सर्व शुद्धिने माटे कारणरूप आप्त
पुरुषोए परम कृपा करीने कह्युं छे. ४.
रागादिविक्रियां दृष्टवांगिनां क्षोभादि मा व्रज
भवे तदितरं किं स्यात् स्वच्छं शिवपदं स्मर ।।।।
हे! जीव क्षोभ धारीश नहि देखी जीवोना रागादि विकार;
भवमां ए विण होय अवर शुं? निजनिर्मळ शिवपद संभार. ५.
अर्थ :जीवोनी रागादि विक्रिया जोईने क्षोभ (अस्वस्थता)
न कर. संसारमां ते सिवाय बीजुं शुं होय? निर्मळ मोक्षपदने याद
कर. ५.
विपर्यस्तो मोहादहमिह विवेकेन रहितः
सरोगो निःस्वो वा विमतिरगुणः शक्तिविकलः
।।
सदा दोषी निंद्योऽगुरुविधिरकर्मा हि वचनं
वदन्नंगी सोऽयं भवति भुवि वैशुद्धयसुखभाग्
।।।।