Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०८ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
पठने गमने संगे चेतनेऽचेतनेऽपि च
किंचित्कार्यकृतौ पुंसा चिंता हेया विशुद्धये ।।।।
हे आत्मन्! जो विशुद्धि चाहे तो चिंता तज शीघा्र तमाम,
करवा पLन, गमन, जMचेतन, संग प्रसंग के कंइ पण काम.
अर्थ :मनुष्ये विशुद्धिनी प्राप्ति माटे पठनमां, गमनमां,
चेतनअचेतन संगमां तथा कंई पण कार्य करवामां चिंता तजी देवी
जोईए. ८.
शुद्धचिद्रूपकस्यांशो द्वादशांगश्रुतार्णवः
शुद्धचिद्रूपके लब्धे तेन किं मे प्रयोजनं ।।।।
बार अंग श्रुतसागर ते पण निर्मळ चिद्रूप अंश गणाय,
चिद्रूप शुद्ध मªयुं त्यां मुजने, ते श्रुतनुं शुं काम जराय? ९.
अर्थ :बार अंगरूप श्रुतसमुद्र शुद्ध आत्मानो अंश छे. ज्यां
शुद्ध आत्मानी प्राप्ति थई त्यां तेनुं मारे शुं काम छे? ९.
शुद्धचिद्रूपके लब्धे कर्तव्यं किंचिदस्ति न
अन्यकार्यकृतौ चिंता वृथा मे मोहसंभवा ।।१०।।
वपुषां कर्मणां कर्महेतूनां चिंतनं यदा
तदा क्लेशो विशुद्धिः स्याच्छुद्धचिद्रूपचिंतनं ।।११।।
चिद्रूप शुद्ध मªयुं त्यां मुजने कंइ नहि मुज कर्तव्य गणाय,
अन्य कार्य करवानी चिंता मोहजन्य ते व्यर्थ मनाय;
शरीर कर्म के कर्महेतुनुं चिंतन त्यां छे कलेश निवास,
निर्मल चिद्रूपनुं चिंतन त्यां विशुद्धि प्रगटे आत्मिक खास. १०-११.
अर्थ :शुद्ध आत्मानी प्राप्ति थतां कंई करवानुं छे नहि.
अन्य कार्य करवानी चिंता मोहजन्य छे, तेथी मारे ते करवी नकामी
छे. १०.